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Priya Agrawal

Abstract

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Priya Agrawal

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हां फक्र है मुझे

हां फक्र है मुझे

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हां है,

है फक्र मुझे अपनी इन आंखों पर,

जिनसे भले ही कुछ साफ़ ना दिखता हो,

मगर इतनी भी अंधी नहीं की

दुनिया का सच ना देख सकूँ।


हां है,

है फक्र मुझे अपने दिल पर,

जिसे भले ही प्यार करना ना आता हो,

मगर इतना भी पथर नहीं की

दुनिया का दर्द ना समझ सकूँ।


हां है,

है फक्र मुझे अपनी गलतियों पर,

जिनसे भले ही कुछ अच्छा ना हुआ हो,

मगर इतनी भी कमज़ोर नहीं की

दुनिया में कुछ सीख ना सकूँ।


हां है,

है फक्र मुझे अपने दिमाग पर,

जिसे भले ही सर्वत्र ज्ञान ना हो,

मगर इतना भी अज्ञानी नहीं की

दुनिया का तजुर्बा ना कर सकूँ।


हां है,

है फक्र मुझे अपने आप पर,

जो भले ही किसी की चाहत ना हो,

मगर इतनी भी बुरी नहीं की

दुनिया का गुरूर ना बन सकूँ।


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