गुरू शिल्पकार
गुरू शिल्पकार
माता, पिता, बंधू, स्नेही
गुरू जीवन शिल्पकार।
करते संस्कार अनमोल
विदयार्थी भविष्य साकार।
ज्ञान की गंगा बहती है
माया ममता के सागर |
निस्वार्थ प्रेम करके देते
विद्यार्थी जीवन आकार।
गुरू देते उडान के पंख
विद्यार्थी को जीवन भरारी।
अनुशासन शिस्तप्रिय
होते कभी कभी करारी।
बालक ही गुरू की पंढरी
बालक ही गुरू की काशी।
विदयार्थी भविष्य उज्ज्वल
देखते होते गुरूंवर खुशी।
ज्ञानामृत पिलाकर गुरू
तुम्ही हो मेरे माता, पिता।
गुरूंवर तेरे चरणों में मैं
नित शिश मेरा झुकता।