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Preeti Goyal

Abstract

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Preeti Goyal

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गहरे जख्म

गहरे जख्म

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निशान छुप गए तो क्या, 

जख्म बहुत गहरे है

जहाँ छोड़ गया था तू

हम तो अब भी वहीं ठहरे है 


माना फिर से हँसी हूँ मैं 

ज़माने को दिखाने के लिए

आंसुओ का समंदर आँखों में 

दिल मे उठी दर्द की लहरे है 


बिन तुम्हारे मरहम भी लगे 

जैसे नमक हो जख्मों पर लगा 

भागे तेरी यादो के पीछे ही सदा 

लाख लगाए हमने दिल पर पहरे है 


एक बार तू लौट कर आ तो सही 

एक बार फिर गले लगा तो सही 

भर जाएंगे हर जख्म दिल के 

हाँ, भले ही बहुत ये गहरे है।


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