गहरा राज़
गहरा राज़
प्यार तेरा बनकर रह गया
एक गहरा राज़
जैसे कोई अनसुनी कहानी
या अनसुना अल्फ़ाज़
न कोई आरम्भ न कोई अंत
बीत गई मेरी हज़ारो वसंत
न तुम पहुँच सके ना मैं इस प्यार के कैलाश
कैसे करू अब इस दुख पीड़ा का नाश
प्यार तुम्हारा धर्मशाला जैसा
जहा बीते मेरे दिन बीती मेरी रात
बस नसीब में नहीं लिखी तुम से मुलाक़ात
प्यार तुम्हारा वृत्ताकार
न मिला इसका कोई छोर
फिर भी बांधे एक नाज़ुक़ सी मज़बूत डोर
अब तो आजा छोड़कर अपना महल
ख़त्म हो रही जिंदगी की चहल पहल
विलुप्त हो रहा ग़ुलाब का लाल रंग
p>
इस जिंदगी से हो रहा मेरा मोह भंग
पत्ता पत्ता झड़ रहा हर बार
कैसे रखूं उम्मीद
कैसे करू तेरा इंतज़ार
यमुना पार कर आजा प्यार के पंजाब
अंधी आँखों से देखू मैं तेरे ख्वाब
आजा छोड़कर सारी दुनिया सारा जहान
तेरे वियोग में कही बन ना बैठूँ
मैं "बिरहा का सुल्तान "
आजा लेकर इश्क़ की बींन
ख़त्म करना ये जिस्म मुझे
होकर तेरी रूह में विलीन
बहुत हो चुकी दूरभाष पर बातें
तेरे गले लगकर करना चाहूं अब इज़हार
एक गहरा राज़ बन कर रह गया तेरा प्यार
एक गहरा राज़ तेरा प्यार... तेरा प्यार..।