घर की याद
घर की याद
चैन ओ सुकून मिलता है
या तो यार की बाहों में
या फिर घर की पनाहों में
याद सताती है, तड़पाती है
या तो यार दिलदार की
या फिर घर बार की ।
जब तक इनका साथ है
तो घबराने की क्या बात है
मनभावन का, घर आंगन का ।
कोई कद्र नहीं है
आंख से निकले आंसू की
घर से बेघर आदमी की.
