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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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घर की याद

घर की याद

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चैन ओ सुकून मिलता है 

या तो यार की बाहों में 

या फिर घर की पनाहों में 

याद सताती है, तड़पाती है

या तो यार दिलदार की 

या फिर घर बार की ।

जब तक इनका साथ है 

तो घबराने की क्या बात है 

मनभावन का, घर आंगन का ।

कोई कद्र नहीं है

आंख से निकले आंसू की 

घर से बेघर आदमी की. 


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