" एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी है सवार "
" एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी है सवार "
कश्ती मेरी फंसी है यूं बीच भंवर में,
न कोई खिवैया है और न कोई पथवार,
फिर भी जाना है मुझे नदिया के पार,
हौंसले अब भी बुलंद हैं,
और मेरी दुआओं में अब भी बहुत दम है,
एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी है सवार,
फिर भी जाना है मुझे नदिया के पार ।
दुआओं की ताकत को आज़माना ना कभी,
हो चाहे कितनी भी तेज़ नदिया की धार,
चाहे ले लें लहरें कितने भी उफान,
और आ जाएं चाहे कितने भी तूफ़ान,
एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी है सवार,
फिर भी जाना है मुझे नदिया के पार ।
ना कोई साथी है, ना है कोई हमसफ़र,
फिर भी पार करना है ये भंवर,
करेंगी मेरी दुआएं इतना असर,
कि लहरों को लौटना होगा अपने घर,
एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी है सवार,
फिर भी जाना है मुझे नदिया के पार ।
ले चली हैं अब हवाएं खुद बनके खिवैया,
मुझको मेरी मंजिल की तरफ अब ले चली मेरी नैया,
दुआओं की ताकत को आज़माना ना कभी,
ए तूफ़ान! इनसे टकराना न तू कभी,
खुदा जो खुद आए, सुना था कभी,
मेरे खुदा ने आज खुद ही कर दी मेरी नैया पार !
एक उम्मीद की रोशनी पर कश्ती मेरी थी सवार...।