एक लड़की हूँ मै
एक लड़की हूँ मै
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अपने घर को मैंंने अपना बनाया फिर भी पराया धन हूँ मैं,
जिस संसार को मैंंने जन्म दिया उसमें ही घुट के जी रही हूँ मैं।
हर अच्छाई के बदले बुराई मिलती है
पर हर बुराई में भी अच्छाई ढूँढती रहती हूँ मैं।
हर शून्य को हज़ार बनाती,
एक लड़की हूँ मैं।।
अपने घर की इज्ज़त हूँ मैं,
फिर भी दहेज़ के मोल बिक जाती हूँ मैं।
विदाई के आंसू में खुशियों के सपने होते हैं,
पर ससुराल की राजनीति में आंसू पीकर रह जाती हूँ मैं।
निरंतर दु:ख सहकर भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करती,
एक लड़की हूँ मैं।।
हर कामयाब इंसान के पीछे वजह हूँ मैं,
फिर भी कमज़ोर कड़ियों में हमेशा गिनी जाती हूँ मैं।
मैंंने जिन्दगी में कभी हारना नहीं सीखा,
पर अपने हक़ की लड़ाई में ही हार जाती हूँ मैं।
खुद मेहनत करके दूसरों से कन्धा मिलाती,
एक लड़की हूँ मैं।।
शादी का मतलब भी नही पता होता जब बालिका वधु बन जाती हूँ मैं।
अपने खेलने की उम्र में तब अपने बच्चे को खिलाती हूँ मैं।
बचपन ईश्वर का दिया वरदान है हमको,
पर इन्सान की बचकानी सोच की मजबूर भेट चढ़ जाती हूँ मैं।
हर उस बेरहम इन्सान के खिलाफ आवाज़ उठाती,
एक लड़की हूँ मैं।।
सुन्दरता और तहज़ीब के लिए जानी जाती हूँ मैं,
पर राह चलते हर गन्दी नज़र से नप जाती हूँ मैं।
मुझको मनोरंजन का सामान समझा जाता है,
दिखावे और फूहड़ता में कहीं खो गई हूँ मैं।
पश्चिम में आज भी पूरब को ढूँढती,
एक लड़की हूँ मैं।।
जन्म से पहले ही कभी हार जाती हूँ मैं,
लडके की चाह मे मार दी जाती हूँ मैं।
मैं तो भगवान की इच्छा का पालन करने आई थी,
पर उनकी मर्जी के विरुद्ध आए लोगों का शिकार बन जाती हूँ मैं।
दूसरों से अपनी ज़िन्दगी की भीख माँगती,
एक लड़की हूँ मैं।।
पति के लिए सावित्री अपने बच्चों के लिए सीता हूँ मैं,
प्रेम का पर्याय मीरा और नफरत के लिए काली हूँ मैं।
एक ओर मुस्कुराहट, करुणा, शीतलता है,
तो दूसरी ओर शिव की तीसरी आँख हूँ मैं।
एक तन असंख्य रूपों में रहती,
एक लड़की हूँ मैं।।
खुद भूखा रहकर दूसरों का पेट भरती हूँ मैं।
कठिन व्रत करके दूसरों के लिए दुआ करती हूँ मैं।
अपने दु:खों को छिपाना आदत है मेरी,
दूसरों की खुशियों के लिए हमेशा लड़ती रहती हूँ मैं।
नारी शक्ति की अनकही छिपी दास्ताँ कहती,
एक लड़की हूँ मैं।।