एक आसमान बुन रहा हूं
एक आसमान बुन रहा हूं
आते-जाते मौसमों से
कुछ ना कुछ चुन रहा हूं,
उड़ते-गाते पंछियों से
जीने के मायने सीख रहा हूं,
बेकरार सा होता जा रहा हूं
सपनों के पीछे,
जो समेट ले मेरी जमीं को
ऐसा एक आसमान बुन रहा हूं...
धागे थोड़े कच्चे हैं, तजुर्बे जो
ज़रा कम हैं
इरादे तो पक्के हैं,
मुसिबतों का ना ड़र है
कठीनाईयों को भी
अपने रंग ढाल रहा हूं,
जो समेट ले मेरी जमीं को
ऐसा एक आसमान बुन रहा हूं...
ना है कोई साथी,
ना ही हमसफ़र का हाथ
लेकिन है भरोसा के किस्मत
ख़ुद करने आएगी हमसे मुलाक़ात,
दुखों को पीछे छोड़े मैं
मुस्कुराहटों के कदम गिन रहा हूं,
जो समेट ले मेरी जमीं को
ऐसा एक आसमान बुन रहा हूं...