ए दिल
ए दिल
ए दिल ...
तू कभी रुठे आदमी से, गले लगा के देख
उसके आंसुओं से खुद का कंधा,
गिला होते देख
काफी भारी होते हैं ये आँसू,
जिनपे ना काबू पा सकेगा
ए दिल, खुदगर्ज ना बन तू,
यकीन मान, खुश ना रह पाएगा।
क्या खूब है तेरी तारीफ,
दूसरे दिल से भी जुड़ जाता है
थोड़ी फिकर कर ले उसकी,
जिसमें तू बसता है।
प्यारे से गुलाब को ना लिपट,
डंठल पे तो काँटे होते ही हैं
तू तो बच जाएगा,
उस कटी उंगली से तो खून,
बहना ही है।
सुना है, तू मचलता है,
सुना है, तू टूट भी जाता है,
तेरे कारण बिखरी निंदो से,
इंसान बीमार भी पड़ता है।
बाहे फैलाए खड़े इंसान से,
कभी पुछी है उसकी चाहत ?
खुद ही फंस जाता है उलझनों में,
खुद के ही बढ़ते बोझ की, क्या है तुझे आहट?
