दो परिंदे प्यार के
दो परिंदे प्यार के
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते!
जाते हैं भूल याराना
करते बस अपना-अपना
तू -तू ,मैं-मैं दिल करता
तोड़ते इक दूजे का सपना
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते !
अटूट प्रेम होता खंडित
बस होती ईर्ष्या सज्जित
इक मुजरिम! बनता दूजा जज
होता फ़िर रिश्ता लज्जित
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते!
देख कभी जो आहें भरते
उफ़-उफ़ करते अब न थकते
जानू ,जान ,जानम , जानेमन
अब तो बस सपनों में करते
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते !
जाने क्यों करें हैं दईया-दईया
जब इक दूजे के बने खेवइया
फ़िर लड़ने बैठे तो
बन जाते हैं लरकइयां
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते !
संसार में दो जोड़ों का सार
साथी बिन दूजा मझदार
क्यों फ़िर रखते दरकार
बाती , दिया बिन बेकार
परिंदे दो प्यार के
आपस में हैं जब लड़ते !
