धर्म की सीख
धर्म की सीख
अपनी मर्जी किस पर थोपु धर्म की यही दुहाई है
राह राह पर राख पड़े हैं किसने आग लगाई है ?
मन के भीतर झांक जरा तू इनमें भी परछाई है
लुटती दुनियाँ साख नही अब खबरों में कहाँ सच्चाई है।
तुमने किसको समझाया है, कैसी बात बताई है ?
हर घर में तो बेबसी है और दर्द की खाई है।
मन करता है छोड़ दूं सब कुछ, जितनी मेरी कमाई है
खेल रहा है जात-पात पर, कितनी अजब लड़ाई है।
हिन्दू वहीं है मुस्लिम वहीं है, वहीं सिख-ईसाई है
बंदे हैं सब उस रब के ही, जाने कैसी लड़ाई है ?
धर्म वही जो मेल कराये, किसने नफरत सिखाई है ?
बाहर फेको उस कचड़े को, जिसने गंध फैलाई है।
इंसा है हम खुदा नहीं है, धर्म की यही पढ़ाई है
लौटो फिर से वहीं जहाँ पर, ना ही कोई जुदाई है।
सब एक हो सब नेक हो, जहाँ सभी पर भाई है
छोड़ो बैर अब रहने भी दो, जो भी बची लड़ाई है।
बाँट लेंगे हम आधा-आधा, जितनी भी पूण्य कमाई है
नष्ट करो बंदूक-मिसाइल, जिसने गाज गिराई है।
मिलकर सब अब एक हो जाओ दुनिया की यही भलाई है।