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चंद्रयान- निरंतर प्रयास

चंद्रयान- निरंतर प्रयास

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वक़्त अर्धरात्रि था चंद्रयान बढ़ चला,

चाँद से मिलन का भाव उसके मन में था पला।


उसके मन में था जुनूँ तो हौसला नहीं हिला,

इस धरा के बंधनों को तोड़ के वो जा मिला।


चाँद भी अधीर था, गोद में समा लिया,

के.सीवान का मगर वो धन्यवाद कर गया।


भारतीय अंतरिक्ष संस्था रुको नहीं,

हम तुम्हारे साथ हैं तुम तनिक झुको नही।


भारती का शीश आज गर्व से दमक रहा,

तेरे हौसले का तेज सूर्य सा चमक रहा।


क्या हुआ जो दो कदम नहीं पड़े निशान पे,

आयेगा वो भी दिवस होगा तिरंगा चाँद पे।


आप जो निराश होंगे हम भी अश्रुपूर्ण होंगे,

मिल के हम कदम बढ़ाएं जो महत्वपूर्ण होंगे।


ये कदम रुकें नहीं ये हौसलों की जंग है,

शोर कर रही पवन बज रहा मृदंग है।


आसमां को चीर कर तुम चाँद तक पहुच गए,

क्या धरा और क्या समंदर, दिग दिगंत हिल गए।


कितनी बार तुमने हमको गौरवान्वित किया,

भारती का शीश को कीर्ति से सजा दिया।


फिर कदम बढ़ाओ जाके अंतरिक्ष चीर दो,

प्यास को बुझाओ उसकी, चंद्रमा को नीर दो।


आपके अथक प्रयास को मेरा प्रणाम है,

इसरो मेरे देश की आन-बान-शान है।

जय हिन्द,जय भारत।

 



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