City Bus
City Bus
कभी आपने सिटी बस से सफ़र किया है? मैं अक्सर करता हूँ ।सिटी बस का सफर मुझे बोहोत कुछ बताता है, अपनी ज़िंदगी के बारे में , इस धरती के बारे में । जैसे बस है हमारी धरती यानी पृथ्वी, प्रवासी यानी जनता । हम सब मुसाफ़िर अपने अपने सपने लेकर इस धरती पर आते हैं । जिस बस में हम सफ़र करते हैं उसे हम अच्छा नहीं रख सकते जैसे हम यंहा वहां थूकते हैं, कचरा डालते हैं, तोड़ फोड करते हैं।
जो सीट पे बैठे होते है, वो सब अमीर लोग है उन्हें कोई लेना देना नहीं होता कि कितनी ग़रीबी बढ़ रही है यानी कितने लोग खड़े हैं वैगेरे... । बस के अंदर लिखा होता है "औरतों के लिये", "पुरुषों के लिये"... ये बताते हैं कि कैसे हम सब अभी भी आरक्षण, श्रेणी इस सब में फसे हुए हैं । विंडो सीट यानी खुशियां जो सब को चाहिए ।
कंडक्टर मुझे याद दिलाता है भगवान् की जो कुछ नहीं कहता.. लोग जो चाहें, जैसे चाहे इस धरती का इस्तेमाल करते हैं... बस में इतने लोग चढ़ते हैं वो कुछ नहीं कहता । पॉपुलेशन बढ़ती जा रहीं हैं, पैर रखने को जगह नहीं हैं । जब बस किसी स्टॉप पर रूकती है यानी किसी कि मौत आयी है.. भगवान् घंटी बजाकर इशारा देता है कि भाई तेरा सफ़र ख़तम, कुछ भीड कम होती है, धरती को लगता चलो कुछ बोझ कम हुआ... लेकिन जीतने उतरते है उससे दो गुणा और पैदा होते हैं ।
बस ड्राइवर यांनी ऑक्सिजन है अगर वो रूक गया तो हम यानी आमीर - गरीब, उंच नीच, काला गोरा सब के सब रुक जायेंगे । ड्राईवर कोई नहीं बन ना चाहता वैसे ही हम पैड नहीं लगायेंगे लेकिन हमें ऑक्सिजन चाहिए.. हमे रूकना नहीं हैं ।
जब ये सब चीज़ें हद से ज़्यादा बढ़ जाति हैं तो बस चीखने लगतीं, भूकंप, सुनामी आती हैं । धरती बताती हैं कंडक्टर को ये बोझ मुझे नही सहा जा रहा है.. लेकिन वो तो भगवान् है.. वो बोलता है मैंने सबको समझ दी हैं.. हर जगह लिखा है "थूकना मना है", "कचरा मत डालो ".. कोई पालन करता है कोई नहीं करता, अब वो जाने और तुम जानो ।
आखिर मैं बस चीखते चीखते बंद पड़ जाते है.. पता नहीं ये धरती कब तक हमारा बोझ सह पायेगी!
