sanjay bhardwaj

Abstract

3  

sanjay bhardwaj

Abstract

चौकन्ना

चौकन्ना

1 min
382


सीने की 

ठक-ठक 

के बीच

कभी-कभार 

सुनता हूँ

मृत्यु की

खट-खट भी,

ठक-ठक..

खट-खट..,


कान अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा ये

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ

और अनवरत..,


आदमी यदि

निरंतर

सुनता रहे

ठक-ठक के साथ

खट-खट भी,


बहुत संभव है

उसकी सोच

निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..! 


Rate this content
Log in

More hindi poem from sanjay bhardwaj

Similar hindi poem from Abstract