चौकन्ना
चौकन्ना
सीने की
ठक-ठक
के बीच
कभी-कभार
सुनता हूँ
मृत्यु की
खट-खट भी,
ठक-ठक..
खट-खट..,
कान अब
चौकन्ना हुए हैं
अन्यथा ये
ठक-ठक और
खट-खट तो
जन्म से ही
चल रही हैं साथ
और अनवरत..,
आदमी यदि
निरंतर
सुनता रहे
ठक-ठक के साथ
खट-खट भी,
बहुत संभव है
उसकी सोच
निखर जाए,
खट-खट तक
पहुँचने से पहले
ठक-ठक
सँवर जाए..!