चाह मिलन की खुद से ।
चाह मिलन की खुद से ।
खुद से मिलने ऐसे ही, किसी रोज़ निकल जाना,
अंधेरी राहगुज़र है, मद मशाल जला जाना।
तड़प मिलने की दिखलाना, तुम बस वहीं डट जाना,
आँख करुणा से भर लाना, नि:स्वार्थ होकर झुक जाना।
देख तुम्हारी चाह स्वयं ही, द्वार को है खुल जाना,
असीम प्रकाश को अपनी ओर, बिना रुकावट आने देना।
छोड़ स्वयं को, उसके भीतर प्रवेश तुम कर जाना,
मिल जाए तो रह जाना, ना मिले तो लौट आना।
प्रकाश स्वयं का अपने भीतर, तुम भी एक दिन पा जाना।।
