बसंत के नाम एक चिट्ठी
बसंत के नाम एक चिट्ठी
और आज फिर
ठंड से ठिठुरते हुए
आयी तुम्हारी याद
प्रिय बसंत,
याद आती है तुम्हारी
तब भी
जब होती हूँ लथपथ
पसीने में।
तुम याद दिलाते हो
नहीं है कोई
तुम जैसा,
जो देता हो
दुख से तपते हृदय को
अपने स्नेह की ठंडक भी
और शुष्क पड़ चुकी
भावनाओं को
अपने नेह की ऊष्मा भी।
प्रिय बसंत
तुम आते हो
लेकर फूलों की सौगात,
तुम आते हो
तो होती है रंगों की बरसात।
तुम आते हो
तो खिल उठते है मुरझाए चेहरे,
तभी तो हो
सदा से प्रिय मौसम तुम मेरे।