भारत की नारी
भारत की नारी
कभी दुर्गा तो कभी अहिल्या बन जाती है
कभी जौहर व्रत कर पद्मिनी हो जाती है ।
निज पुत्र कर बलिदान कभी वह पन्नाधाय बन जाती है
तो कभी शत्रुओ के समक्ष पर्वत सी तन जाती है ।
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो
नभ को छू कर कल्पना बन जाती है।
संहारक बन कभी असुरो के प्राण हरती है
तो कभी ममता की मूरत हो जाती है।
रक्त पिपासु होकर रण में शत्रुओ का लहू पी जाती है
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो वैरियों के
वक्ष चीरने हेतु लक्ष्मीबाई बन जाती है।
कभी माँ सीता तो कभी भगवद सी गीता हो जाती है
स्वतंत्रता समर में कभी सरोजिनी तो
कभी कृष्ण की मीरा हो जाती है
कभी इंदिरा बन शत्रु के टुकड़े करती है
तो कभी सुषमा बन जीवन पुष्प चढ़ाती है
वह नारी है रणचंडी माँ दुर्गा जो
बछेन्द्री बन हिमालय को बौना कर जाती है।
