बचपन
बचपन
वो बचपन भी कितना सुनहरा था,
जहां ना कोई गिला शिकवा था,
अपनी मस्ती में सारा जमाना था,
ना कोई बेगाना था,
खुशी की कीमत बहुत छोटी सी थी,
दुख का ना कोई कारण हुआ करता था,
जब हंसी सच्ची हुआ करती थी,
और आंसू तो सिर्फ कुछ पाने का बहाना था,
दिल खिलौनों का दीवाना था,
भावनाओं को ना इसने जाना था,
सिर्फ प्रेम का निवास था,
ना कोई मन मुटाव था,
दिल से रिश्ते निभाते थे,
मतलब का तो मतलब भी नहीं जानते थे,
वह दोस्तों का रूठना ,फिर उन्हें मनाना,
छोटी छोटी बातों में खुशियां ढूंढ़ लेते थे,
आज बड़ी बड़ी बाते भी खुश नहीं कर पाती,
जादुई दुनिया पर कितना यकीन था,
आज हकीकत पर भी शक है,
ना कुछ पाने की लालसा थी ,
ना कुछ खोने का डर,
आखिर क्यों बड़े हुए हम,
वह बचपन ही कितना सुहाना था।