बचपन मे खो जायें
बचपन मे खो जायें


चलो एक बार फिर बचपन में खो जायें,
पिकनिक नहीं तो सैर ही कर आयें,
एक कप चाय की प्याली मे ..
बचपन ढूंढ लायें,
कँची ,पतँग,और रेत के घरौंदे मैं
वही मुस्कान ढूंढ लायें...
स्कर्ट्स पकड़ कर छुक छुक रेल चलाये...
बिन पैसों के खुश हो जायें...
कागज की चार पर्ची में
राजा चोर मंत्री ,सिपाही बन जायें...
अँधेरे मे छिप कर छिपा छिपायी खेल आयें...
बिरचुन और उबली बेरों मे शायद ही वही रस पायें.....
वही स्लेट और बत्ती लेकर मासब और बहन जी बन जायें
गुब्बारे की घँटी सुन फिर से दौड़े-दौड़े आयें....
बैट बल्ला न सही मुँगरी से ही काम चलायें....
छत में गेंद जाते ही ....
फिर से वही दौड़ लगायें...
सात गिप्पी रख पिट्टू खेल आयें.....
गिट्टियों के टुकडों से चपेटा खेल आयें.....
इमली के बीजों से अट्ठू खेल आयें...
एक बार फिर से चवन्नियां धरती मे दबा कर....
पैसों का पेड लगायें...
पेड़ बड़े होने के इंतज़ार में रोज पानी दे आयें.....
काश हम सब फिर वही.
सकून की जिन्दगी फिर से जी पायें....
शायद वो बचपन के दिन वापस आ जायें...
बिन पैसों के ही चैन की जिन्दगी जी पायें.......