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Ritu Joshi

Abstract

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Ritu Joshi

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बातें और यादें

बातें और यादें

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अब बात कम ही होती है कुछ वक्त गुजरने के बाद,

एहसास रह जाते हैं रिश्तो में, जान जाते हैं

भावो को कभी कहकर छुपते हुए कभी बिना कहे समझने से..

अब बहाने नहीं होते एक दूजे को परेशान करने के,

कोई ख्वाहिश नहीं होती रूठे को मानाने की

जब रिश्ते जोड़ने वाले बड़े हो जाते हैं बात कम ही होती है..

खामोश सा रिश्ता भी जिक्र या फ़िक्र तो लिए होता है

पर कुछ पन्नो के उलट पलट से दबा सा रहता फ़िक्र का ज़िक्र भी...

आज भी आहट ढूंढता है दबी छुपी ख्वाहिशो मे तेरा साथ ढूंढता है,

रिश्तो की उम्र के साथ अब बातों के बहाने ढूंढता है क्यूकि अब बाते कम ही होती हैं.


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