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Divya B c

Abstract

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Divya B c

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अंतरंग के शीशे

अंतरंग के शीशे

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ज़िन्दगी के हर लफ्ज़ में,

सुनहरा ख्वाहिशों है


सोचते ही वक़्त निकलते हैं,

मन को कुछ तो कहने दे


सुबह की बूंदें पत्तियों में,

शाम की बुँदे बारिश में।


हम हैं कहाँ, कुछ न पता

बस चल रहे हैं आगे,

है वहाँ, नया जहान।


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