"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
मन की शुद्धता
रूप स्वाभाविक
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
मन शरीर उपेक्षा रहित
भीतर निर बाहर शुद्ध
ईश्वर प्रिय निर्मल कया
जन्म मरण ना समय रोके
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
गीतांजलि कविता अंश
"तुम्हारा जीवंत स्पर्श"
"मेरे अंग अंग पर है"
यह जानते हुवे
अपनी देह को मैं
सदा पवित्र रखूंगा
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
स्पर्श ईश्वरीय पहुंचाया धरती
विकाश मनुष्य शील भक्तिज्ञान
व्यवहार श्रेष्ठ स्तर उच्चतम
प्रमाण साधन प्रधान पवित्र
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
गंदे वातावरण विचार गंदे
नहीं रुचि ना ठहरे बचे सब
जाना चाहे पास तुरंत दूर
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
मतलब होता शुद्धता
ठीक तरह खुद को जानो
चिंतन भीतर परम्परा बाहर
बाहरी स्वच्छता शुद्धता
भीतरी शुद्धता पवित्रता
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष"
एक शेर शाहब अशरफ
पाकीजगी-ए-दिल
के सिया कुछ नहीं फिरदौस
दोजख है वो दिल जिसमे
मोहब्बत की कमी है
जहां पवित्रता नहीं
प्रेम भी नहीं होगा
मन की शुद्धता
स्वाभाविक रूप
ना की लादी हुई
शास्त्रों में वर्णित
मन शरीर की स्थिति
"अनपेक्ष: शुचिदर्क्ष।