अनचाही लड़की
अनचाही लड़की
जिसकी कोई चाह नहीं,
फिर क्यों उसे जन्म दे दिया?
बेटे की चाह में क्यों,
अनचाही बेटी को जना गया?
क्यों उस पल महान बनकर,
कोख से तो बचा लिया।
फिर क्यों हर पल चुभती है?
क्यों इतने ताने देते हो?
क्यों ज़िंदा रखकर उसको,
हरदम घुटने देते हो?
क्या गलती थी उस बेटी की,
जो थी अनजान तेरी ख्वाहिश की।
वो नवजात प्रभु की देन थी,
अपने माँ बाप को ही,
अपनी दुनिया मानती थी।
क्यों उसकी दुनिया इतनी बुरी थी।
क्यों क्यों क्यों आखिर क्यों?
तुमने अनचाही बेटी जनी थी???
क्यों दर्द दिया उसको इतना,
क्यों बाल रूप उसका छीन लिया?
क्यों बचपन से ही,
हर वक़्त उसको।
तुमने अनचाही बता दिया?
थक गई वो रोते रोते,
अपनों से मिले उसे हर दिन धोके।
लड़ते लड़ते वो हार गई,
ज़िंदा होते हुए जीना भूल गई।
क्या दोष उसका था बतलाओ?
क्यों लड़की वो अनचाही थी बतलाओ?
क्या वो इंसान नहीं है?
क्या उसका दिल नहीं है?
या तुम मूर्ख हो इतने,
कि तुममें समझ की कमी है?
