अजन्मी बेटी से मन की बात
अजन्मी बेटी से मन की बात
मानती हूँ मेरी कोख में पलती तू
लेकिन अपने निर्णय अपने आप ले सकूं
मेरे निर्णय को स्वीकृति कभी मिली नहीं।
जानती हूँ मेरी परछाई सी तू
अपनी परछाई को साथ लेकर चल सकूं
ऐसे मजबूत मेरे काँधे नहीं।
चाहती हूँ मेरी सखी बने तू
तेरे दादी पापा को अपनी बात समझा सकूं
ऐसी कोई जुबान मुझे सिखाई नहीं।
चाहती हूँ पंख फैलाकर उड़े तू
तेरे मेरे सपनों को पलकों पर सजा सकूं
इतनी आंसू भरी आखों में जगह नहीं।
चाहती हूँ दुनिया में आये तू
जब तेरे लिए एक नयी दुनिया बसा सकूं
अभी ये दुनिया तेरे लायक नहीं।