ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है
ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है
ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है,
ज़िन्दगी के पहलूओं से अंजान क्यूँ है।
उलझने ही तो हैं, सुलझ जायेंगी,
अंधेरी रात ही तो है, कट जायेगी,
मत बुन ज़िन्दगी के इतने ताने-बाने,
कब, क्यूँ और कैसे ये तो बस खुदा ही जाने।
ना जाने इतने सवालात तेरे
और मेरे दर्मयान क्यूँ है,
ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है,
ज़िन्दगी के पहलूओं से अंजान क्यूँ है।
अदना सा है तू, दुनिया में कहीं खो जायेगा,
अगर अपनी पहचान खुद ही ना बनायेगा,
क्यूँ तू दिखावे की ज़िन्दगी जीता है,
दिखावा तो हमें खुद से ही दूर किये देता है।
जाने तुझे अपने होने पे इतना गुमान क्यूँ है,
ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है,
ज़िन्दगी के पहलूओं से अंजान क्यूँ है।
मत कर ज़िन्दगी के इतने हिसाब-किताब,
ज़िन्दगी का कोई ठिकाना नहीं है,
जी सकता है तो जी ले आज,
कल का कोई बहाना नहीं है।
जो कर ही सकता सब कुछ,
तो सोच तू 'इंसान' क्यूँ है
ऐ दिल तू इतना नादान क्यूँ है,
ज़िन्दगी के पहलूओं से अंजान क्यूँ है।।