अब से हर रात,
जब तुम सो ना पाओगी,
लाल आँखों की हैरान लकीरें,
बोलो कहाँ छुपाओगी?
बेतरतीब ज़ुल्फ़, सूजी आँखें
गवाही फिर भी दे जाएँगी...
कि भूल नही पाई हो अब तक,
कि भूल नही पाओगी,
ज़िन्दा हो जब तक.
माना है कुछ रियायतें तुमको,
कि मन के भाव छिपा लेती हो,
अंदर ही अंदर बिलख-बिलख,
नयनों से अश्क सुखा लेती हो...
मगर एक बात सुनो,
साफ नज़र आ जाती हैं,
सूखे आसुओं की,
नालियाँ तुम्हारे गालों पे
बस यही निशानी काफ़ी है,
बताने को,
कि भूल नही पाई हो अब तक,
कि भूल नही पाओगी,
जिंदा हो जब तक.
तन्हाई लिपट जाएगी तन से,
हर एक बदलती करवट पे
नाम उभर कर आ जाएगा मेरा,
बिस्तर की बलखाती सिलवट पे
देर-सबेर जब तुमपे,
हंस रहा होगा घर का
हरेक आईना,
बार-बार देखोगी अपनी गर्दन पे,
मेरे होठों के निशान
गायब हो चुके वो निशान बता देंगे...
कि भूल नही पाई हो अब तक,
कि भूल नही पाओगी,
ज़िन्दा हो जब तक...