आंखे
आंखे
ना खामोश हम थे,
ना हमारे लफ्ज़ थे I
पर कमबख्त आंखे
फितूर हो गईं I
आपको, हमारे दिल कि खामोशियां,
ये, बयां जो कर गई I
कुसूर दरअसल आंखो का नहीं,
दिल का था, हुजूर,
जिसने खामोशियों से कर ली थी दोस्ती I
ना खामोश हम थे,
ना हमारे लफ्ज़ थे I
बस ये आंखे जो है
थोडी नम सी रहती हैं,
कमबख्त वही है जो,
दिल से दोस्ती निभाती है I
