STORYMIRROR

Riti Rana

Romance

4  

Riti Rana

Romance

आख़िरी कॉल

आख़िरी कॉल

1 min
279


इश्क था तुमसे वफ़ा भी थी मेरे हर वादे में सच्चाई भी थी।

चाहा था हर बार तुझे तेरे सिवा मेरे कोई खुदाई ना थी

तू ही थी बस मेरा समुंदर तन्हा रातों में तू ही परछाई थी


घड़ी थी हाथ पर मेरे पर उसका सारा समय तुझी को जाता था

आईने में मुझे अक्स तेरा नजर आता था

इश्क को मेरे तू बदनाम कर गई जलते हुए अंगरो पर अकेला छोड़ गई

सह लेता में हर दर्द एक बार कुछ बता तो देती

थी कोई दिक्कत तो समझा तो देती क्यों ..क्यों तू ऐसे चली गई


बस एक लास्ट मैसेज पर अलविदा कह गई ज

ब किए मैंने बारंबार फोन तुझे उनके से इक ना लगा

यह नम्बर बन्द है हर बार बस इतना सुना ही


जब छोड़ना ही था ऐसे ..तो क्यों ज़िन्दगी में आई थी

मासूम से दिल में मेरे क्यों जागह बनाई थी

आज भी तेरी आखिरी कॉल की रिकॉर्डिंग बार बार सुनता हूं


आएगी तू वापस अपनी मोहब्बत पर इतना यकीन रखता हूं

जब मन चाहे वापस आ जाना

आज भी अपनी हर सांस में सिर्फ तेरे नाम रखता हूं।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Riti Rana

Similar hindi poem from Romance