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Harishh Kumar

Abstract

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Harishh Kumar

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आज रात अचानक से आँख खुल गई

आज रात अचानक से आँख खुल गई

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आज रात अचानक से आँख खुल गई

बंद खिड़कियों के सुराखों से,

सर्द हवाएं अंदर चली आ रही थी

छू कर मुझे, मानो कुछ कहना चाह रही थी।


असमंजस में था मन मेरा और चुनना थोड़ा मुश्किल था

गर्म बिस्तर छोड़कर जाने का मेरा बिलकुल भी मन नही था

ठण्ड बड़ी थी इतनी, की अम्बर भी अपना ठिठुर रहा था

बचने के लिए ही तो वह, धुंध का कम्बल ओढ़ रहा था।


हलचल सी मन में एक तरफ पर

उस हवा को सुनना चाहता हूँ

बीतें समय में बैठकर, मैं पछताना नहीं चाहता हूँ

तब कदम उठे और बाहर चले,

जहाँ धुंध धुंध और कुछ ना दिखे।


अम्बर की आँखों से देखा फिर,

कुछ लोग दिखे उन आँखों से

जब सारी दुनिया सोती है,

तब कौन ये जो जाग रहे ?

बोली हवा फिर ऐसा कुछ,

की बात लगी जा सीने में।


जो दिल में जूनून और आग लिए,

ये लोग है वो जो जाग रहे

सपनों का पिटारा साथ लिए,

ये लोग है वो जो जाग रहे।


मुश्किलों से जो ना भाग रहे,

ये लोग है वो जो जाग रहे

मेहनत की कलम को हाथ लिए,

ये लिख अपना खुद भाग्य रहे।


ये लोग है वो जो जाग रहे,

ये लोग है वो जो जाग रहे

आज रात अचानक से आँख खुल गई।


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