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Rashi Raut

Inspirational

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Rashi Raut

Inspirational

आत्मसमाधान

आत्मसमाधान

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 सुनीता बिस्तर में लेटकर अंगड़ाई दे रही थीं, तभी उसे आवाज सुनाई दी! सुनीता ने दरवाजे की और झांक कर देखा, कि एक मोटी सी गोरी रंग वाली , भुरे आंखो वाली, माथे पे एक कुमकुम का बड़ा सा टीका लगाया हुआ,घने मोटे बालों वाली औरत खड़ी होकर कह रही थी! माई कुछ खाने को दे दो, नहीं कुछ खाना तो ,दो पुराने कपड़े ही दे दो! सुनीता नौ-दस साल की थी; उस औरत को देख कर सुनीता डर गई, वैसे वह औरत देखने मैं खूबसूरत ही थी ,पर घने बालों की और हाथों के अगल - बगल में लटके झोले से वह कुछ अजब सी लग रही थीं! सुनिता के मां ने उस औरत को दिवाली में बनी मिठाई और कुछ पैसे दिए; वह औरत दुवा देकर चली गईं!


उस दिन के बाद से ,सुनीता ने उस औरत को हमेशा हर त्योहारों में आते हुए देखा, गांव के लोग उसे कुछ न कुछ देते थे! और वह उन्हें दुवा देकर चली जाती थी!


कई साल बीत गए, सुनीता बीस बरस की हो चुकी थीं! दिवाली की पहली सुबह थीं,सुनीता दिये जला रही थी! उसे लगा उसे कोई झांक रहा है, वह अचानक से डर गई!

माई कुछ खाने को दे दो ,नहीं कुछ खाना तो दो ,पुराने कपड़े ही दे दो ,भगवान तुम्हारा भला करेगा, ऐसे वह औरत कह रही थीं ,सुनीता गए सालो से उसे देख रही थी ,उस औरत की उम्र ज्यादा हो गईं थी, पर चहरे से वह वैसे ही खूबसूरत थी! भूरी आंखे गोरा रंग, घने बाल कुछ ज्यादा लग रहे थे. वह पल्लू से उसे ढकने की कोशिश करती थी! सुनीता के मां ने हमेशा की तरह से उसे मिठाई और कुछ पैसे दिए; और वह औरत दुवा देकर चली गई!


सुनीता आंगन में रंगोली बनाने बैठ गईं, तभी उसने मां से गुस्सा हो के कहा, मां मुझे यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं,तुम क्यों इन्हे ऐसे आदत लगाई रखी हो, हमारा घर चलाने के लिए तुम और पापा कितने मेहनत करते हो,और तुम इनको मिठाई और पैसे देती हों; मुंह डेडा मेड़ा करके सुनीता अपने मां से कह रही थीं! कितनी गोरी मोटी भीकारन हैं, साल में चार बार आती है और तुम चार बार देती हों , बहूत कमाया होगा उसने और एक तुम हो बुद्धू ऐसा कहकर सुनिता ने मुंह फुलाया!

सुनीता को समझाते हुए उसके मां ने कहा, अरे पगली यह कैसा तरीका हैं बात करने का! ऐसे लोगों को तो हमें पहले मदत करनी चाहिए! ऐसे कामों से ही ही हमें आत्मसमाधान मिलता है, जो किसी पैसो या चीजों से नहीं मिल सकता,, मां ने सुनिता को समझाने की कोशिश की,,,,,

"आत्मसमाधान" क्या और क्यों मां? आंखे बड़ी करते हुए; सुनिता मां की बात बीच में ही रोक कर घर के अंदर आ गईं!

सुनीता बहुत नटखट थी, उसमें भावना की इतनी समझ शायद अभी तक नहीं थी! इसलिये उसने  अपना गुस्सा घर पे पाली हुईं बिल्ली पे निकाला,और उसे लकड़ी का खोफ दिखाकर

भगा दिया,, आई बड़ी फोकट का दूध पीने. कहकर सुनिता फिर से रंगोली बनाने के लिए आंगन में चली गईं!


फिर साल बीत गए,सुनीता पच्चीस - छब्बीस साल की हो गई! ऑफिस में उसकी अच्छी नौकरी लग गई, उसकी शादी भी एक अच्छे लड़के से हुई !हर साल की तरह भीकारन आज भी भीक 

 मांग रही थी, वह मोटी भीकारन आज उनके आंगन में नही थीं, क्योंकि ;अब सुनिता का गांव पहले सा नही रहा. बहोत बदल चुकां था! सुनिता अब बिल्डिंग में रहने लगी थी !. बाल्कनी मै खड़े दुर से सुनिता उस भिखारन को देख रही थी .

तभी उसने अपने मां को आवाज दी ! मां देखो तो , उस औरत को कितने साल बीत गए; अभी भी भीक मांग रही हैं, मैं बचपन से उसे देख रही हूं ऐसे ही हैं . मुझे यह बात अजीब सी लगती है! और सुनिता आगे कहने लगीं .मां अब कैसे करोगी दानधर्म . और हंसते हुए मजाक में कहा.में तो नही जानेवाली अब कहो,तुम कैसे जाओगी!.बोलो बोलो..! मां ने सुनिता के हाथ में तौलिया देते हुए कहा,किसी को कहा जाने की जरूरत नही हैं! 

और आगे मां ने हंसते हुए यह कहा .बेटा तुमसे पहले मैं उठ जाती हूं,! मेरा पूरा काम भी हो गया.जब मैं कूड़ा की गाड़ी आई थीं !तभी ही मिठाई और पैसे उस औरत को दे आई हूं!

.और तुम जिसे कह रही हों, वह औरत अभी आई नहीं बल्कि अभी वह जा रही हैं!तुम तो इतनी आलसी हो, कि अभी तक नहाई भी नहीं. !

चलो अब जाओ नहाने. कितनी देर हो गईं .क्या सोचेंगे ?

जमाई राजा. यह तुम्हारी पहली दिवाली है .और तुम तैयार भी नहीं हो .

पूजा करनी बाकी है !

चलो ,चलो जल्दी करो मैं तुम्हें नाश्ता लगाती हूं कहकर मा किचन में चली गई!

सुनीता अब सोचने पर मजबूर हो गई कौन है यह औरत!

 कहां से आती है, कहां रहती है! उसे यह सब जानना था!

 सुनीता के मां की तरह ,गांव की दूसरी औरतें भी उसे क्यों इतना महत्व देते हैं! और 

"आत्मसमाधान " 

सुनीता के मन में बहुत से विचार आए .सुनीता घर से बाहर निकलकर जाने ही वाली थी !और उसे पूजा के लिए देरी हो रही थी. इसलिए वह नहाने चली गई! सुनीता तैयार हो गई तो उसने बालकनी से झांक कर रास्ते पर देखा वहाँ भीकारण नहीं थी!


कुछ सालों बाद सुनीता तीस- पैंतीस की हो गई !उसके दो बच्चे भी हुए. सुनीता अपने परिवार - नौकरी - बच्चों की पढ़ाई में व्यस्त हो चुकी थी!बच्चों की स्कूल की वजह से वह ज्यादा मायके नहीं आ पाती थीं.

 पर इस साल होली का अवसर मिल ही गया !और वह अपने बच्चों को लेकर मायके आ गई. सुनीता की छोटी बच्ची जिद कर रही थी .तो सुनीता उसे दुकान ले गई!

अब गांव पहले जैसे नहीं था. कितना सब कुछ बदल गया था! सभी जगह भीड़ भीड़ दिख रही थी .

सुनीता बचपन में खेलती थी वह पेड़ भी वह नहीं दिख रहे थे! उनकी खेलने के झूले बहुत सी यादें याद करते करते सुनीता खिलौने की दुकान के बाहर ही बैठ गई!उसी समय गांव में रहने वाली चाची उसे मिली .

और सुनीता कैसी हो? दोनों में गप्पे की शुरुआत हुई. इतने में आवाज सुनाई दी! माई कुछ खाने को दे दो, नहीं खाना है.तो पुराने कपड़े ही दे दो!

 वही बूढ़ी औरत जिसे सुनीता बचपन से देखते आ रही थी. अब वह थोड़ी बूढ़ी हो चुकी थी! 

चाची ने उसे प्रणाम किया! उसकी पूछताछ की और बहुत सारी बातें भी उससे की !

 सुनीता को तभी पता चला.

 दूसरे गांव के पहाड़ के नीचे रहने वाली है वह !उसका नाम है रखमाबाई ! रखमा बाई की शादी छोटी उम्र में ही हुई .और सास-ससुर मर गए! 

उसका परिवार बहुत ही बड़ा. उसके खुद के तीन बच्चे .और तीन देवर और एक ननंद भी बच्चे छोटे थे!और देवर ननद भी इतने बड़े नहीं थे .

पति मजदूरी काम करके घर चला रहा था. पर इतने से पैसे में घर संभालना बहुत ही मुश्किल था! इसलिए रखमाबाई गांव में लोग जो काम देते थे . वह सभी के काम करती थी!

 और त्योंहारों के दिनों में वह भीख मांगने का काम करती थी! और आगे चल के उसने अपने बच्चों की शिक्षा पूरी की! देवर ननंद की शादी भी करवाई !

खुद अनपढ़ होने के बावजूद भी रखमां बाई ने अपने पूरे परिवार को सभी सुविधाएं दी !

रखमाबाई ने मेहनत कर के झोपड़ी का बड़ा सा घर बनाया! जहा वह पूरा परिवार रहता था. सुनीता ने चाची से यह सारी बातें सुनी .तो रखमाबाई के लिए उसके मन में आदर की भावना निर्माण हुई.

 सुनीता ने मन में कहा, मैंने रखमांबाई को समझने में बहुत बड़ी गलती कर दी!सुनीता के बच्ची ने दुकान वाले भाई साहब से पिचकारी ली .और तोड़ भी दी.और दूसरी पिचकारी न देने से दुकान वाले भाई साहब उसे मना कर दिये, वह रोने लगी .!

इसीलिए सुनिता दुकान के अंदर चली गई! थोड़ी देर बाद बाहर आकर देखा तो चाची भी सब्जियां लेने चली गई! रखमाबाई तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं दी! सुनिता को उसे कुछ देना था!

 पर वह उसे कुछ मदद ना कर सकी. इसका उसे अफसोस हुआ!


दस साल बाद एक ऐसी बात हुई. जब सुनीता मायके आई थी! सुनिता के भाभी ने जिद करने पर सुनिता उसके भाभी के साथ मार्केट चली गई .शॉपिंग करने के लिए !भाभी रंगीन साड़ियां देखने में व्यस्त थी! तभी सुनीता का ध्यान रास्ते की दूसरी तरफ गया . वहा एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था!

 एक बूढ़ी कांपते हाथों से पानी पी रही थी !अचानक से उसकी बोतल गिर गई .सुनीता ने अपनी भाभी को कहा .अभी मैं पांच मिनट में आती हूं .ऐसे कहकर सुनीता बरगद के पेड़ की और चली गई! उस बूढ़ी को देख कर सुनीता ने कहा ..रुको मैं देती हूं आपको पानी की बोतल.

 नीचे गिरी हुई बोतल उसने उठाई! अपने रुमाल से साफ कर के ,उसने बुढ़िया को पानी की बोतल देते कहां ,कौन हो आप? आपका नाम क्या? उसने कहा 

रखमाबाई!

रखमाबाई का नाम सुनते ही सुनीता चौक गई!

 उसे याद आया मा ने तो एक दो साल पहले ही कहा था ,कि रखमाबाई तो मर गई !

अब दो-तीन साल हो गई वह यहां भीख मांगने भी नहीं आती है! सुनीता को उस समय अजीब सी घुटन हुई थी! 

मां की बात सुनकर .पर आज रखमाबाई को जिंदा देखकर उसे बहुत अच्छा लगा! पल भर के लिए उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था .कि यह सच में रखमाबाई  ही है या कोई और! 

रखमाबाई को सुनीता गौर से देखने लगी. चालीस - चव्वालीस साल बाद.

 शायद उससे भी ज्यादा पहले उसने रखमाबाई को अलग रूप में देखा था !

जो आज ऐसे दिख रही थी! उसकी भूरी आंखें आज दो नहीं बल्कि एक ही थी ! रखमाबाई एक आंख से अंधी जो हो चुकी थी! पूरी घर ग्रहस्ती संभालने में उसने अपना गोरा रंग काला कर दिया था! गोल मटोल रखमाबाई आज दुबली पतली सी हो चुकी थी! रखमाबाई पूरी तरह से वृद्धावस्था में आ चुकी थी! वह बहुत ही बूढ़ी हो चुकी थी!

सुनीता ने कहा रखमाबाई तुम्हारा इतना बड़ा बड़ा परिवार था. तो तुम्हारी आज ऐसी हालत क्यों? मेरे सवाल का जवाब देते हुए रखमाबाई बोली मेरा पति नहीं रहा. मेरे बच्चे बड़े हुए. घर संसार में वह व्यस्त हैं !उनके बच्चे भी अब काबिलियत की सीढ़ी चढ़ गए! पूरे परिवार को मुझे अपना मानने में शर्म आती है !

वह कहते हैं , लोग तुम्हें भीकारन समझते हैं इसी कारण हमें शर्मिंदा होना पड़ता है !मेरे बच्चों ने मुझे साफ-साफ कह दिया. मां तुम यहां ना रहो ,अगर तुम यहां रहोगी .तो हम सभी यहां नहीं रहेंगे! 

यह फैसला कर का निर्णय मुझे लेने में ज्यादा समय नहीं लगा! क्योंकि मेरी पूरी जिंदगी काम कर कर के और भीख मांगने में चली गई! मैं बहुत तकलीफ उठा कर आज बच्चों को इतने अच्छे दिन दे पाई हूं .तो मैं क्यों ?वहां रहूं .इसलिए मैं चुपचाप वहां से चली आई .और आज यहां हूं. मैं बहुत खुश हूं! .

रखमाबाई जोर जोर से ख़ास ने लगी. इतना सब कहने के बावजूद भी रखमाबाई की आंखों से आंसू की एक बूंद भी नहीं आई. इस विशाल सागर मां के मन को देखकर सुनीता हैरान सी हो गई .और अपने खुद के आंसू को रोक न पाई!सुनीता ने अपने आंसू पहुंचते कहां रखमां बाई.

चलो उठो मैं अभी तुम्हें अपने घर ले जा रही हूं !और मैं तुम्हारी एक भी ना सुनने वाली हूं!

रखमाबाई ने सुनीता को गौर से देखा और कहां बेटा क्या मैं तुम्हें एक बार छू सकती हूं! 

सुनीता ने जल्दबाजी में हा हा हा रखमाबाई क्यों नही ऐसे कहा! रमाबाई ने अपने दोनों हाथों को सुनीता के चेहरे के से घुमाकर अपने होठों से खुद के हाथों को चूमा.

 उस समय सुनीता को एक अजीब सी शक्ति का एहसास हुआ! रखमाबाई ने फिर से सुनीता के सर पर हाथ घुमाकर कहां सच में मैं आज बहुत खुश हूं मैं अभी मर भी जाऊं तो गम नहीं और रखमा बाई रोने लगी? रमाबाई को सुनीता ने अपने हाथो से उठाते हुए कह रही थी. तभी रखमाबाई बोली ,बेटा मुझे अपने घर मत ले जाओ. तुम्हें क्यों मेरी तकलीफ .

में यही ठीक हूं! 

सुनीता ने कहा नहीं रखमांबाई मेरे मां ने मुझे जिंदगी में एक पाठ पढ़ाया है !"आत्मसमाधान "का! जो तुमसे जुड़ा हुआ है जो मुझे पूरा करना है! 

आत्मसमाधान का पहला एहसास महसूस करते हुए रखमाबाई को लेकर सुनीता आगे चल पड़ी!



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