अपने अपने कर्त्तव्य
अपने अपने कर्त्तव्य
सुबोध सब्जी के थैले पटकते हुए खरीदारी कर साथ आई पत्नी शालिनी पर टूट पड़ा " ये क्या हरकतें करती रहती हो, सब्जी लेने कौन घर से पॉलिथीन की थैलियां उठाकर ले जाता है ? तुम्हारी छोटी, अजीब सी सोच वाली ये हरकतें, पेपर बचाने के लिए पैंफलेट, टिकटें, बिल इत्यादि पर
लिखना, आर ओ से ड्रेन होते हुए पानी का इस्तेमाल करना, न जाने कब ऐसी ओछी हरकतों से बाहर आओगी ? और तो और संयम को आईआईटी पास करने के बाद तुम इसे देश में ही रहकर रिसर्च करने की घुट्टी पिलाती रहती हो, क्यों नहीं विदेश जाकर उसे अपना करियर बनाने देती ? जवाब दो ।" अचानक चीख ही पड़ा सुबोध ।
शालिनी ने शांत भाव से कहा " बचपन में हमें पाठ्यक्रम में भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, शिवाजी, तेग बहादुर, वीर सावरकर और गांधी जी द्वारा आजादी पाने के लिए चलाए गए आंदोलनों के बारे में पढ़ाया जाता था । उन्हें पढ़कर मैं आवेश से भर जाती, क्यों नहीं उस समय पैदा हुई ? मैं भी स्वतंत्रता सेनानी बनती, देश की आज़ादी के लिए लड़ती ? अब बड़े होकर समझ आया है आजादी पाने के बाद भी हमें देश के प्रति कई कर्तव्य निभाने होते हैं देश की संपदा का सही इस्तेमाल कर साधन बचाने होते हैं । लायक, संस्कारी युवा तैयार कर देश के सुपुर्द करने होते हैं क्योंकि ये युवा ही देश की सांसे हैं, धड़कन है, भविष्य है । देश की जरूरत केवल स्वतंत्रता नहीं स्वतंत्रता को, लोकतंत्र को सहेज कर रखना और देश की उन्नति में सहयोग देना भी हमारा कर्तव्य है। थोड़े समय के लिए अपने से बाहर निकल कर सोचो सुबोध हम अपने देश के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए क्या-क्या कर सकते हैं ? तुम भी तो सरकारी अफसर होते हुए घूस न लेकर ईमानदारी से अपने फर्ज निभाते हो इसीलिए तो मैं गर्व से सिर ऊंचा कर चलती हूं । हम दोनों अपने -अपने कर्तव्य ही तो निभा रहे हैं।"
ये सुन सुबोध की आंखों में चमक फैल गई, शालिनी के चेहरे पर मुस्कुराहट पसर गई। दोनों मिलकर कह उठे जय- हिंद, जय -भारत
