प्रार्थना
प्रार्थना
हे प्रभु हे दयानिधान !
आप रहते हैं सर्वत्र विद्धमान
हम याचकों पर रखना दया
बरसाते रहना प्रभु अपनी कृपा
इतना देना कि हम सुकून पायें
द्वार से भी कोई न खाली जाए!
हे प्रभु हे कृपानिधान !
आप रहते हैं सर्वत्र विद्धमान
आप एकसार दृष्टि रखकर
समता का भाव जगाते रहना
जीवन के हर पड़ाव पर संग-संग
मुझ अज्ञानी का मार्गदर्शन करना!
हे प्रभु हे सर्वशक्तिमान!
आप रहते हैं सर्वत्र विद्धमान
हृदय में मेरे भरो करुणा भाव
निष्कपट रहूँ सदा,न करूँ अहंकार
दोनों हाथों से भर भर दे सकूँ
इतना कर देना मेरा उद्धार!
हे प्रभु हे करुणानिधान!
आप रहते हैं सर्वत्र विद्धमान
इस पंचतत्व की क्षणिक काया को
आपके अनुग्रह की है अभिलाषा
सद्गति का मार्ग प्रशस्त हो सभी का
है अंजुली भर उस प्रसाद की पिपासा !