तेज़ाब
तेज़ाब
हक है मुझे भी चुनने का,
पुछा जाए सवाल तो ना कहने का,
तुम्हारी खुशी मे मेरी खुशी नहीं,
पर इस बात को तुम्हारे डर से
झुठला दूँ मैं इतनी झूठी नहीं,
इतनी सी ही तो बात थी,
पहुँची उसकी मर्दानगी को ठेस,
और देख किसी ने तेज़ाब फेंक,
मेरा चेहरा जला दिया,
दर्द में कराहती रही मैं,
ज़ोरों से चिल्लाती रही मैं,
चेहरा मिटाने चले थे मेरा,
मेरी पहचान कैसे मिटाओगे,
खुद से नफ़रत करने
पे मजबूर किया,
एक "ना" का बदला
तुमने क्या खूब लिया,
मैंने खुद ही अपने झुलसते
शरीर को संभाला है,
अपने अंदर की आग को
खुद ही पाला है,
सालों लग गए मेरी बिखरी
ज़िंदगी समेट पाने में,
लोगों को मैं भी इंसान हूँ
ये एहसास दिलाने में,
चेहरा नहीं रहा अब वैसा
पर सख्शियत अब नई हूँ,
एक नए आत्मविश्वास के साथ
देख मैं तुझ जैसों से लड़ने
शेरनी की तरह खड़ी हूँ।
