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Shishpal Chiniya

Abstract

4.0  

Shishpal Chiniya

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कृष्णन

कृष्णन

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ममधुसूदन

मुझे मंजूर है , हर तरह से दुआ माँगना।

हे-सारथी बिन माँगे भी मुझे बहुत मिला।

अर्जुन मिला तुमसे ,संजय भी मिला था।

रणक्षेत्र में सौभाग्य से विराट-रूप मिला।

गर मेरी मुराद हो पूरी, अगले जन्म की।

अभिलाषा होगी मेरे यही सहस्त्रों जन्म की।

बनूँ मैं कौन्तेय अर्जुन, आप मुझे मिले वहीं।

न जाने कब मिलेगा , मेरे केशव-सा सारथी।

तेरे चरणों की धूल को , मस्तिष्क चढ़ा लूँगा।

हर बार रण में ,विचारहीन खुद को बढ़ा लूँगा।

बस हो मेरे साथ तुम - अधर्म का नाश करूँ।

सेना का क्या करूँगा,मैं माधव का विश्वास करूँ।

पितामह को भूल गया , धर्म का जब दास बना।

मेरा ही सौभाग्य था, जो सारथी का विश्वास बना।

हे माधव तेरा दास हूँ , मैं जन्मोंजन्म विश्वास हूँ।

इच्छा अधूरी न रहे आपकी बस इसी से निराश हुँ।

समझौते से धर्म का विनाश , तूने क्या कर दिया।

धर्म के लिए महाभारत और, मुझे अमर कर दिया।

कभी महान अर्जुन नहीं था ,तूने महाबाहो बनाया।

गीता उपदेश से मेरे मन को , और सुंदर बनाया ।

जब - जब जिक्र होगा , मेरे श्याम की लीला का।

पार्थ-सारथी, कृष्ण-अर्जुन, कौन्तेय-केशव मिला था।

हे माधव शिशपाल नाम है मेरा आज कलिकाल में ।

तेरे चक्र से मरने का सौभाग्य मुझे भी मिला था।

मेरे माधव को मेरा प्यार ।


शिशपाल चिनियाँ "शशि"


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