मैं प्रकृति हूँ
मैं प्रकृति हूँ
मैं प्रकृति हूँ
ईश्वर की उद्दाम शक्ति और सत्ता का प्रतीक
कवियों की कल्पना का स्रोत
उपमाओं की जननी
मनुष्य सहित सभी जीवों की जननी
पालक
और अन्त में स्वयं मे समाहित करने वाली।
मैं प्रकृति हूँ
उत्तंग पर्वत शिखर
वेगवती नदियाँ
उद्दाम समुद्र
और विस्तृत वन-कानन मुझमें समाहित।
मैं प्रकृति हूँ
शरद, ग्रीष्म और वर्षा
मुझमें समाहित
सावन की बारिश
चैत की धूप
और माघ की सर्दी
मुझसे ही उत्पन्न
मुझसे पोषित।
मैं प्रकृति हूँ
मैं ही सृष्टि का आदि
और अनन्त
मैं ही शाश्वत
मैं ही चिर
और मैं ही सनातन
मैं ही समय
और समय का चक्र
मैं प्रकृति हूँ।