वसंत की उमंग में

वसंत की उमंग में

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बसंत पंचमी का दिन था सब लोगों के मन में एक अलग से उमंग आ जाती है और धरती को देखकर धरती पूरी सिंगार में रहती है शृंगार रस थोड़ा सा ज्यादा ही सबके हृदय में आ जाता है हमारे बड़े पापा जो कि गांव में रहते हैं हमारी बड़ी मां को बहुत प्यार करते थे पर हम सब बच्चों के कारण बाबा संकोच करते थे और वे दोनों बात भी नहीं कर पाते थे बड़े पापा दूर एक जहां जानवर बनते हैं वहां पर सोते थे ताई जी दूध लेकर जाती थी वह जब 1 दिन रात में दूसरे के बसंत पंचमी के दिन जा रही थी तब थोड़ा सा सौ कदम पड़ता है जाने के लिए तो एक आदमी उनके कान और गले का उतारने लगा तो ताई जी ने कहा अरे मैं तो आ ही रही थी यह बुढ़ापे में तुम्हें क्या क्या हो क्या है।

घर में बच्चे हैं अपनी उम्र का लिहाज करो। मैं तो तेरा चुपचाप चली आई और सुबह ताऊजी से अपने कान का और गले मानने लग गए कि कल रात में तुमने मेरी छीन लेते कहां रहती हो जी ने कहा तुम तो कल रात में मेरे पास आई ही नहीं थी। ताई जी कहां रास्ते में मिले थे और ले लिए थे बाद में पता चला कि वह कोई चोर उनके गले और कान का छीन कर ले गया था।

इसके बाद ताई जी एक महीने तक बाहर नहीं निकले और बसंत पंचमी के नाम पर बेचारी घर के अंदर ही रहती हैं हमारे शर्म से लाल हो गई हम सब जो पूछते हैं कि ताई जी कान और गले का काम किया तो उनके मुंह से बहुत सारी गालियां ही निकलती है और कैसी है अब क्या बताएं माता की सरस्वती की जैसी मर्जी थी।

मुझे तो बुढ़ापे में बदनाम कर दिया सब लोगों ने मिलकर राम राम चुप रहो तुम लोग। हंस के लोटपोट हो जाते हैं इस घटना को 50 साल बीत गए हैं पर आज भी बहुत ताजा है। बसंती बहार सबके मन में चाहिए।


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