वक़्त कर्म नहीं भूलता
वक़्त कर्म नहीं भूलता
सुधा नाम की एक लड़की थी जो बड़ी ही बदतमीज थी अपनी माँ की कभी भी बात नहीं सुनती थी और हमेशा लड़ाई करते रहती थी। हर बात पर उल्टे जवाब दिया करती थी, उसकी माँ वसुधा को बहुत गुस्सा आता था पर क्या करती अपनी ही औलाद जो ठहरी, बड़ा समझने पर भी उसकी आदतें नहीं सुधरती।
एक बार सुधा के हाथ में पानी का बोतल होता है। वह पानी पीते पीते हाथ से बोतल नीचे गिर जाता है और वो जाकर अपने मोबाइल फ़ोन में गेम खेलने लग जाती है, आवाज़ सुन कर माँ जल्दी जल्दी आने लगती है और पानी पर पैर फिसल कर गिर जाती है।
माँ के गिरने पर सुधा को बहुत हँसी आती है, उसकी दर्द भरी आवाज़ सुनकर और हँसी आती है। जैसे तैसे माँ उठकर अपने कमरे में जाकर लेट जाती है। कमर दुखने लगती है, सुधा सुधा माँ पुकारती है बहुत पुकारने पर वो पूछती है- "क्या हो गया अम्मा ऐसा क्यों चिल्ला रही हो"? माँ ने कहाँ "बेटी मेरे कमर बहुत दुःख रही है थोड़ा सा बाम लगा देना।"
वो उत्तर में कहती है अम्मा मेरा गेम चल रहा है मुझे ये लेवल पार करना है और बाम लेकर कमर पर लगाकर अपने पाँव से मलने लगती है। माँ को इस बात से बहुत दुःख हुआ और उसने बद दुआ दी की तुझे भी तेरी औलाद इससे भी बढ़ कर सताए जो तू ने मेरे साथ किया तुझे उस कर्म को भुगतना पड़ेगा।
उस दिन सुधा को एहसास हुआ के उसने बहुत गलत किया, उसने सुधरने की कोशिश की और अम्मा की काम कांज में मदद करने लगी, उसका ब्याह तय हो गया, बड़ा अच्छा दामाद मिला, बड़ा शरीफ और समझदार। उसने विदाई के वक़्त अम्मा से माफ़ी मांगी। माँ तो माँ ही है उसने सच्चे मन से बेटी को माफ़ कर दिया।
एक साल बाद उसको एक बेटा हुआ, बड़ा प्यारा और नटखट, बड़ी मस्ती करता था पर सुधा को बहुत चाहता था। बेटा आठ साल का हो गया था वो सुधा का हर काम में हाथ बटाता था वो भी उसे बहुत प्यार करती थी। उनके यहाँ चार मेहमान आने वाले थे। दोनों ने मिलकर घर की साफ़ सफाई की और मज़ेदार खाने भी बनाये, मेहमान को बहुत पसंद आये।
रात में जब वो सोने लगी तो उसके पैर बहुत दर्द कर रहा था, बेटे ने देख कर बाम लाया और लगाने लगा और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, सुधा परेशान हो गयी, कहीं उसके हाथ तो जलने नहीं लगे, उसने जवाब दिया, "अम्मा जब भी मैं तुझको बाम लगाने हाथ बढ़ाता हूँ मेरे पैर बढ़ने लगते है, मुझे माफ़ करना मैं तुझे पैर नहीं लगा सकता "कहकर रोने लगता है।
वह भी रोने लगती है की मेरे ही कर्मो की ये सजा है, मैं भूल जाऊं तो क्या वो नहीं भूलता।