वो काली रात
वो काली रात
पौष माह की वो हड्डिया ठिठुरा देने वाली रात थी। करीब १०:३० का समय होगा ग्रामीण श्रेत्र होने के कारण पुरा गाँव नींद की गर्भ मे सो रहा था। मै दलानें में कोयले की अंगिठी के पास ही खाटिया पर लेट गेहूँ के बुआई के बारे मे सोच रहा था।
मुन्ना अपने माई की साथ भीतर के कोठरी मे सो रहा था। शेरु भी खटिये के पास ही था। बताता चलू शेरु मेरा पालतू कुत्ता था जो की मुझे कुछ सालों पहले ही मरणावस्था मे मिला था और तब से मेरे साथ ही मेरे सुख दुख का साथी था। ढलते रात के साथ ठंड भी अपनी चरम सीमा तो छूती जा रही थी। मेरी आँख अभी लागी ही थी की शेरु खड़ा हो उठा और इधर उधर बेचैनी से घूमने लगा मैंने तो पहले ध्यान नही दिया और कहा सो जा भाई शेरु काहे परेशान हो भाई और हमका भी सोने देओ। शेरू फिर भी नही माना। उसके इस बर्ताव को देखकर मुझे किसी अनहोनी की आसंका हुई। अचानक ही शेरू ने भौकना शुरू कर दिया। मैंने ध्यान से सुना तो मुझे घोड़े की टापो की आवाज सुनाई दी। मै अभी कुछ समझ ही पता अचानक रमुआ की घरवाली चीख पड़ी वो मुनिया के बापू देखो रे 'सुजान सिंह' और उसके साथीयो ने खलिहान के अनाज मे आग लगा दिया हम लूट गए ,बरबाद हो गए, मर गयी रे मोरी मैया। सुजान सिंह हमारे इलाके का कुख्यात डाकू है। उसका अड्डा काली पहाड़ी के पीछे है। पुलिस ने उसपे ₹५००० हज़र नगद का इनाम घोसित किया है,फिर भी आज तक किसी की हिम्मत नही हुई उसे पकड़ने की।
ये सुनते ही मेरे पैरो तले धरती खिसक गईं क्युकि खलिहान मे मेरा भी धान था जो की मैंने दो दिन पहले ही काटा था। मै जल्दी ही खलिहान की ओर निकला तभी मुझे याद आया क्यों न मुन्ने की माई को बोल दु की केवाड लगा के घर मे सावधानी से रहे। मै भीतर के कोठरी मे गया और मुन्ने की माई को जगा ही रहा था तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई मै सहसा ही समझ गया ये सुजान सिंह के ही लोग है।
शेरू जोर जोर से भोकने लगा। मैंने मुन्ने की माई को ड़ाकूवो के बारे मे सब बता दिया और बोला की तू भीतर से केवाड की चटकनी लगा ले और मुन्ने का और अपना ध्यान रख। वो एक कमजोर कलेजे वाली स्त्री थी रोने लगी और मुझे बोली की हम पीछे के दरवाजे से भाग जाते है। लेकिन मैंने उसकी नही मानी और सांत्वना दी और बोला की मै अभी आ जाऊंगा। मैंने अपनी लाठी ली और बाहर दलान मे आया।
शेरू जोर जोर से भोंक रहा था। बाहर दरवाजे पर डाकू दरवाजा खोलने की धमकी दे रहे थे। मैंने दरवाजा नही खोला और गुस्से मे आकर उन्होंने मेरे केवाड को तोड़ दिया और अंदर घुस गए। उनके घर मे घुसते ही मै और शेरू उनपर टूट पड़े। मैंने तीन-चार को तौल तौल के लाठी रशीद किए। शेरू भी उनपे झपटा। मै अभी उन्हे मार ही रहा था तभी सुजान सिंह आ गया और आते ही उसने अपने बंदूक के कुंदे से मेरे सर पर वार किया और मै वही बेहोश हो गया। उन्होंने शेरू के पेट मे तलवार घुसा दिया । मेरे आँखों के समक्ष ही मेरे प्यारे शेरू ने दम तोड़ दिया। मै लाचार था।
वो फिर भीतर घुसे और मुन्ने और उसकी माँ को मौत के घाट उतार दिया। मुन्ने की माँ को तो उन लोगो ने पहले चील और गीद्ध के भाँति नोच नोच के दुसकर्म किया और फिर मार डाला। उसके बाद उन्होंने पुरा घर लूटा। मुन्ने की मां के ५ थान गहने ,१२०० नगद रुपये और अनाज। मुझे मृत समझ वो मेरे मुँह पर थूक कर चले गए। मेरे घर के बाद रामुआ के घर की बारी आई, उन दरिंदो ने रामुआ और उसकी बिटिया को मौत के घाट उतार दिया।
उस काली रात को पूरी रात हमारे गाँव मे मौत का नंगा नाच हुआ। मेरी पूरी दुनिया उजड़ गईं। मेरा हँसता खेलता परिवार उजड़ गया। अब मेरे पास परिवार कहने के लिए कुछ नही है। मैंने अपना सबकुछ खो दिया। आज भी यही अफसोस करता हु काश! उस रात मैंने मुन्ने के माँ की बात मान ली होती और पीछे के रास्ते भाग गया होता तो शायद आज मै अपने परिवार के साथ होता।