वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे


जी हाँ, वो भी क्या दिन थे ! जब पहली मुलाकात में दिल धड़कते थे।धड़कन बढ़ती थी, जज्बात उभरते थे।अरमान जागते थे और तब पैगाम पहुँचते थे। चिठ्ठीयाॅ लिखी जाती थी।हर हर्फ दिल का हाल बयां करता था।फूलों की सुर्ख लाली मुलाकात की बानगी कहती तो सूखे फूल यादों की दास्ताँ सुनाते।
दौर वो भी था दौर ये भी है, बस अब दिलों की धड़कन से पहले मोबाइल की रिंग बजती है। स्टेटस अपलोड होता है, डी पी बदली जाती है चिठ्ठियो की जगह मेसेज ने ले ली है। वो उस दौर का प्यार था जिसमें गर्माहट थी ठहराव था और ये इस दौर का प्यार है जहाँ हर क्षण बदलाव माँगता है। ठहर गया तो स्वीट कपल नहीं तो बाय बाय माँगता है।