विशिष्ट विद्यार्थी जीवन

विशिष्ट विद्यार्थी जीवन

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हर इंसान के जीवन में विद्यार्थी जीवन का समय सर्वश्रेष्ठ होता है लेकिन इस बात का आभास वो मूल्यवान समय जाने के बाद ही होता है, ऐसे एक वक़्त की बात अब इस कहानी में किया जाने वाला है।

वर्ष १९८७ की बात है। भुवनेश्वर के एक निजी विद्यालय में चंद्रशेखर नाम का एक विद्यार्थी, पाँचवी कक्षा में पढ़ रहा था और वह नवम्बर का महीना था। उसके अनुभाग में अम्बर नाम का एक नया विद्यार्थी दाखिला लिया। उस वक़्त चंद्र को अम्बर से इतना परिचय नहीं था। दिसंबर के आखिरी महीने में अर्धवार्षिक परीक्षाएँ आरम्भ हुई। ऐसे ही एक दिन अंकगणित की परीक्षा था और शाम ४ बजे ख़त्म हुई।

चंद्र ने परीक्षा दे दी और बस जाने वाला था, लेकिन उसने देखा कि अम्बर ने अभी तक अपना परीक्षा पत्र निरीक्षक को दिया नहीं है और थोड़ा ज़्यादा वक़्त माँग रहा था। वैसे निरीक्षक ने थोड़ा वक़्त दे दिया, चंद्र ने सोचा कि बात क्या है। तब तक बाकी सारे विद्यार्थी जा चुके थे। लगभग आधा घंटे तक चंद्र ने अम्बर की प्रतीक्षा की और अम्बर बाहर आने के बाद चंद्र ने पूछा कि बात क्या है। अम्बर ने कहा कि उसको कुछ और सवाल के जवाब लिखने थे। अम्बर ने चंद्र को इंतज़ार करने के लिए बहुत धन्यवाद दिया क्योंकि वो विद्यालय में नया था और कोई उसके बारे में ज़िक्र नहीं किये थे। इस तरह बातों बातों में हँसी ख़ुशी दोनों घर चले गए। चंद्र और अम्बर अच्छे दोस्त बन गए। साथ मिलकर पढ़ते, साथ खाते और विभिन्न बातें करते रहतें।

३ साल गुज़र गए। दोनों पढ़ाई में भी प्रतियोगिता करते थे। अम्बर के पिताजी का भोपाल तबादला हो गया। चंद्र और अम्बर को बहुत दुःख हुआ लेकिन और कोई रास्ता नहीं था। उन दिनों चिठ्ठी लिखना ही एक तरीका था अपना सन्देश देने क्योंकि टेलीफोन बहुत खर्चीला था, तो अम्बर और चंद्र एक दूसरे को चिठ्ठी लिखते रहते। इस बीच चंद्र अपने अध्यापकों से मिले शिक्षा को ध्यान से सुनता और ढंग से परीक्षाएँ लिखता। बाकी कई दोस्त थे लेकिन, अम्बर की याद उसे हमेशा आती।

कई साल बीत गए, दस साल के बाद अम्बर अभियांत्रिकी शिक्षा में स्नातक स्तर की पढ़ाई में भोपाल में दाखिला लिया। कुछ दिनों की छुट्टियाँ लेकर अचानक भुवनेश्वर आया, चंद्र को बहुत ख़ुशी मिली। दोनों ने पूरी, भुवनेश्वर अदि जगहों का सैर सपाटा किया, फिर अम्बर वापस भोपाल चला गया।

उस दिन चंद्र एक अजीब तरीके में शांत था। चंद्र की माँ को पता था की उसके बचपन के दोस्त के जाने का बहुत दुःख है लेकिन यही जीवन है। लोग मिलते हैं और लोग बिछड़ते हैं, जो भी पल मिले उनसे ख़ुशी पा लेना चाहिए। इसी तरह चंद्र अपने गुरुजनों से भी मिलता हैं क्योंकि आज वह जो भी हैं, वह अपने गुरुजनों के बदौलत है।

वैसे अब भी दोनों दोस्त एक-दूसरे से कभी कभी फोन पे बात कर लेते हैं, उसी तरह चंद्र की अपने गुरुजनों से भी मुलाक़ात होती रहती है।

नीति कथा : अपने बचपन के दोस्तों और गुरुजनों को न भूलें। खासकर विद्यार्थी जीवन में दोस्तों और गुरुजनों का बड़ा प्रभाव रहता है | विद्यार्थी जीवन इसलिए हमेशा ही विशिष्ट है।


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