आम और कोयल

आम और कोयल

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आम ! मीठा आम ! पसंद करे जिसे सारी अवाम !

कुहू कुहू कोयल ! सभी जिसके सुर के हैं कायल !

ऐसा कोई नहीं है जिसे आम की मिठास पसंद न हो और ऐसा कोई नहीं है जो बसंत बेला में कोयल की सुरीली आवाज़ का इंतज़ार न करता हो। तो कोयल और आम के बीच में एक अनोखा रिश्ता है। बसंत के समय, अम्बुआ की डारी पर बैठकर ( आम के पेड़ की शाखा से ) कोयल की कुहू कुहू स्वर से सुननेवालों के कानों में मधुर अनुभव देती है।

वैसे कोयल क्यों सिर्फ आम की डाली पे जाती है ? इसमें एक अनकही कहानी छुपी हुई है।

बहुत बहुत सालों पहले, कोयल रानी जंगल में रहती थी और उस जंगल में अन्य सभी जानवर रहते थे। किसी भी समय, वह इस पेड़ से उस पेड़ उड़ उड़कर, ख़ुशी ख़ुशी से कुहू कुहू मीठे स्वर से गाना गाती थी। जंगल में सभी जानवरों को कोयल की आवाज़ बहुत पसंद था। और सभी कोयल रानी के गाने की तारीफ करते थे। बसंत की बेला आई। एक दिन ऐसे ही उड़ते उड़ते कोयल रानी जंगल के बाहर आ गई और नज़दीक के नंदन गाँव में पहुँच गई। वहाँ के पेड़ों में भी कुहू कुहू स्वर से चहकने  लगी। जंगल में एक दिन बाद सारे जानवर कोयल को खोजने लगे।

नंदन गाँव में गांववालों को यह मधुर आवाज़ बहुत अच्छी लगी। लेकिन कोयल को इंसानों के बीच रहने की आदत नहीं थी। जैसे तैसे वापस जंगल की और जा रही थी। लेकिन अगर कोई गाँव वाले ने देख लिया तो !! इसलिए बार बार हर पेड़ के डालियों में छिप छिपकर गाती थी। अब चन्दन नामक एक गाँव वाले ने कोयल रानी पे निगरानी रखकर, उस पर जाल डालकर उसे धर दबोचा। इस सदमे को कोयल रानी बरदाश्त न कर सकी और इस वजह से उसकी मीठी आवाज़ चली गई। कोयल रानी बहुत मायूस हो गई। सभी ग्राम वासियों ने चन्दन को बहुत डांटा और उसको बहुत बुरा भला कहा। इस बीच यह बात गाँव का मुखिया राजाराम के पास पहुँच गई। राजाराम बहुत भला आदमी था। और बहुत संवेदनशील भी था।

उसने चन्दन को बहुत डांटा और कहा की किसीके आज़ादी को छीनने का हक़ किसी को भी नहीं है। सभी को दुनिया में जीने का हक़ है। चाहे वह इंसान हो या जानवर या पंछी। चन्दन ने अपनी गलती मानी और कोयल रानी की मीठी आवाज़ वापस लाने की कोशिश करने लगा। कभी कोयल रानी को शहद पिलाता तो कभी मीठा दूध तो कभी गन्ने का रास। कोयल रानी सब कुछ पी लेती।लेकिन उसकी आवाज़ न आती। दिन भर दुःखी रहती | ऐसे दो महीने बीत गए। गर्मियों का मौसम आ गया। मीठे आम का मौसम आ गया। राजाराम को एक नया उपाय सूझा। राजाराम ने चन्दन को सभी प्रकार के मीठे पके हुए आम लाने को कहा। जैसे सुंदरी, बादामी, तोतापुरी, रसपुरी, ईख जैसे स्वादवाले आम । सभी गाँव वालों ने भी चन्दन और राजाराम का साथ दिया। सभी ने अपने अपने बगीचे से चुने हुए मीठे आम चन्दन को दिए।

 अब राजाराम ने चन्दन को सभी आमों से मीठा रस निकलने को कहा और एक एक कटोरे में रखने को कहा। चन्दन ने ऐसा ही किया और कोयल के पास रख दिया। शुरू में तो कोयल रानी को पसंद नहीं आया। क्योंकि रस पीले रंग का था और आम रस के बारे में कोयल रानी को पता नहीं था। सभी कटोरों से कोयल-रानी दिन भर बारी बारी से बड़े ख़ुशी से आम रस पीने लगी। कुछ दिन बीत गए। एक चमत्कार हुआ। कोयल की आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता आने लगी और दो हफ़्तों के बाद पहले से ज़्यादा मीठे सुर में गाने लगी।

आम रस के इस अजूबे को देखकर सारे गाँव वाले, राजाराम और चन्दन के इस भले काम की सराहना करने लगे। इस बीच कोयल ने गाँव वालों की भाषा भी सीख चुकी थी। कोयल रानी ने राजाराम और चन्दन को धन्यवाद कहा और गाँव वालों को भी आभार जताया। अब उसे जंगल जाने का वक़्त हो गया था क्योंकि उसके सारे दोस्त वहीँ थे। गांववालों को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ। इस पर कोयल रानी ने कहा के बसंत बेला में वह हर साल आएगी और आम की डालियों में बैठकर कुहू कुहू सुनाएगी। उस मौसम में आम के बौरे आते हैं।

कोयल रानी जंगल में चली गई और पहले की तरह हर पेड़ पर बैठकर गाने लगी। सभी जानवरों को उसने अपना अनुभव बताया और आम रस के बारे में भी बताया। दस महीने लगभग बीत गए। जंगल में आम के पेड़ों पर बौरे आये (आम के फूल )। तब कोयल रानी को याद आया की उसे नंदन गाँव जाना है। 

अपने वादे के अनुसार, कोयल रानी नंदन गाँव गई और केवल आम के पेड़ों पर ही गाने लगी। सभी ख़ुशी ख़ुशी सुनने लगे और कोयल रानी की तारीफ़ किए। जैसे ही गर्मियां आईं, कोयल रानी फिर जंगल चली गई और अगले साल आने का वादा कर गई।

तो इस तरह आम और कोयल का अटूट रिश्ता हो गया और हर साल बसंत बेला पर इंसानों के बीच आकर अपने मधुर गान से आनंद देती है।

नीति कथा : हर प्राणी को जीने का अधिकार है और किसी को  किसीके आज़ादी पर अधिकार नहीं है। और अगर किसी का नुक्सान हुआ है, तो जैसे भी हो हर तरह से सहायता करनी चाहिए और अपने गलती को भी मान लेनी चाहिए।


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