वीकेंड वाली पिक्चर

वीकेंड वाली पिक्चर

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सुबह से ही पेट में गुड़-गुड़ हो रही थी। नहीं नहीं, इतवार की वज़ह से नहीं, बल्कि उस पिक्चर की वज़ह से जो उस दिन मैं देखने जाने वाला था। कई महीनों से इंतज़ार था उसका और वैसे भी, ह्रितिक रोशन ने बड़े समय से कोई ढंग की एक्शन पिक्चर की भी तो नहीं थी। ठीक 2 महीने पहले उसका प्रोमो लॉन्च हुआ था, वाह! मज़ा आ गया था उसे देख कर। ठीक वैसा ही एक्शन जैसा अपने शुरुवाती दौर में वो किया करता था। भई मैंने तो पूरा मन बना लिया था, की अगर देखूँगा तो पहला दिन पहला शो ! बस ! पर मेरी क़िस्मत इतनी बुलंद कहाँ? मेरे बुक करने से पहले ही शो हाउसफुल हो गया। उफ़्फ़! ये कमबख़्त बच्चे! इनका स्कूल कॉलेज नहीं है क्या ? सारी टिकटें बुक कर लीं ? फ़िर याद आया कि अरे उस दिन तो छुट्टी है। तो सभी लोग मेरे जैसे पैसे बचाने के चक्कर में.......

ख़ैर, देखना तो था ही। हृतिक की पिक्चर, वो भी एक्शन वाली, ऐसे कैसे छोड़ दें? तो हमने सोचा चलो मैटिनी ही बुक कर लेते हैं। टिकट का दाम देख कर सचमुच नानी ही याद आयी। पर देखना तो था। बस, फ़टाफ़ट बुक कर लिया, इससे पहले की कोई और मेरी भी सीट ले उड़े।

बहारहाल, 3 बजे के मैटिनी के हिसाब से मैं कुछ ज़्यादा ही जल्दी पहुँच गया था। शायद उत्सुकता के कारण।

जो भी हो, मैटिनी शुरू हुई। क़रीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक मेरे आस पास मुझे हलचल सी महसूस हुई। देखा तो कुछ लोग खाने का आर्डर लेने आए थे। उफ़्फ़। क्यों आ जाते हैं ये कमबख़्त? जिसको आर्डर देना होगा, क्या वो बाहर ही आर्डर नहीं दे देगा? मैंने तो ठान लिया था कि अगर मुझसे किसी ने पूछा तो मैं खरी खोटी सुनाने से बाज़ ना आऊँगा। ठीक 2 मिनट बाद एक आवाज़ आयी - सर आर्डर ?

मैं तपाक से पलटा की अब तो नहीं छोड़ूँगा पर..... सामने देखा तो एक छोटी सी लड़की खड़ी थी। महज़ 20-21 साल की होगी? उसका चहरा बिल्कुल सादा था, बिना मेक उप का। ऐसे चेहरे अब गुडगाँव में नहीं दिखते। उसकी सादगी की शीतलता मानों कई अरमानों के क्रंदन कर रही हो। मेरा ध्यान पूरी तरह से पिक्चर से हट गया था और मैं सिर्फ़ उसको देखे जा रहा था। उसके 2-3 बारी पूछने पर भी जब मैंने कोई उत्तर नहीं दिया तो वो मुझसे अपना ध्यान हटा कर बाकी लोगों से पूछने लगी। जब वो कुछ दूर चली गई तो मैं वापस मुड़ा पिक्चर की तरफ़, पर पता नहीं क्यों, एकाग्रचित हो कर नहीं देख पाया। उस लड़की का चेहरा बार-बार......

मैं उठा अपनी सीट से और बाहर निकला, मैनेजर वहीं खड़ा था,खाने के स्टाल के पास। मैं उसके पास गया और उस लड़की की तरफ़ इशारा किया - वो लड़की कौन है ?

मैनेजर मुझे जानता था क्योंकि मैं काफ़ी दिनों से इसी थिएटर में आया करता था और पहले भी हमारी काफ़ी बार बातचीत हो चुकी थी।

"सर उसने अभी अभी ज्वाइन किया है. एक महीना हुआ। हृतिक की बहुत बड़ी फैन है। उसे लगा कि ऐसे जॉब्स में फ्री मूवी देखने की छूट होती है। बहुत गरीब है सर।"

"एक मूवी की टिकट चाहिए। पर सुनो, मेरे साथ वाली मत देना, पीछे जो सबसे आरामदायक सीट हो, वो दे दो, और साथ में एक पॉपकॉर्न और कोल्ड ड्रिंक भी।"

" सर 750 रुपये."

मैंने अपना कार्ड निकाल कर उसे दे दिया।

इससे पहले की वो टिकट और खाने का सामान मुझे पकड़ाता... "सुनो ये सब उस लड़की के लिए है, उसे चुप चाप बिठा दो। बाकी स्टाफ़ में हल्ला ना हो।"

मैनेजर मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था।

ये सब बोल कर, मैं अंदर आ कर अपनी सीट पर बैठा और पिक्चर का आनंद लेने लगा। 10 मिनट बाद जब मैंने पलट कर देखा तो वो लड़की पीछे की सबसे आरामदायक सीट पर बैठी, पॉपकॉर्न खाते हुए पिक्चर देख रही थी, उसका चेहरा ख़ुशी और उत्साह से खिलखिला रहा था।

पिक्चर ख़त्म हुई, सब लोगों की तरह मैं भी बाहर जाने लगा। अचानक मुझे एक आवाज़ सुनाई दी, "थैंक यू सर". मैं पलटा तो वही लड़की खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसकी आँखों में आँसू और चेहरे पर एक सुख की अनुभूति थी। मैंने मुस्कुरा कर हामी भरी, पर कुछ कह नहीं पाया। क्या कहता ? क्या सुनता ? किसी के दुःख और हालात को सुन कर उसे सांत्वना देना सबसे सहज होता है, उस लड़की के साथ मैं वो नहीं करना चाहता था। उसने आगे बढ़ कर हाथ मिलाया और कहा, "हैव अ गुड डे सर".

मैं फ़िर मुस्कुराया और हाथ मिलाकर आगे बढ़ गया।

ऑटो में बैठते वक़्त ख्याल आया, काश उसे बता पाता, की मेरे डे को गुड बनाने में उसका बहुत बड़ा हाथ था।


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