विडंबना
विडंबना
जीवन की गति विधाता नहींं हम खुद निर्धारित करते हैं । एक छोटी सी भूल भी न जाने कितने गहरे गर्त में गिरा जाती है ।निधि ने सोचा भी नहीं था कि उसका पहला प्यार ही उसका बॉस बनकर मिलेगा ।दिन -प्रतिदिन उससे आंखे चुराकर काम करना कितना कठिन था उसके लिए किन्तु सरकारी नौकरी यूं छोड़ी भी नहीं जा सकती थी ।पति से भी कहे तो क्या कहे ? अभी अभी तो इस नए शहर में शिफ्ट हुए थे वो लोग ।एक -एक घटना उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगती थी और अरविंद की छोटी सी नौकरी और गरीब परिवार दोनो के
रिश्ते में आड़े आ रहा था ।किसे पता था कि प्रतियोगी परीक्षा पाद करके वह बैंक अधिकारी बन जायेगा और उससे यूं मुलाकात होगी निधि को अपने नसीब से चिढ़ हो रही थी और माँ -पिता की दी धमकी दिल दहलाने का काम कर गयी थी उस समय ।
कितना सुंदर साथ होता उनका और अब एक रेलवे स्टेशन अधीक्षक की पत्नी बनकर ,एक बड़े से परिवार की बहू बनकर रिश्तों की डोर सुलझाते रहना उसके जीवन की त्रासदी बन चुकी थी ।
पति से उसके विचार जरा भी नहीं मिलते थे ,उनका दबंग स्वभाव उसे सहमकर जीने को मजबूर करता था ।लॉबी मैनेजर के पद पर काम करना उसे कुछ समय के लिए आत्मसम्मान से भर जाता था किंतु घर पुनः काटने को दौड़ता था और इसी कश्मकश में कटी जा रही थी निधि की जिंदगी ।
क्यों भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया ? क्यों उसने माता -पिता का विरोध करने का साहस नहीं दिखाया था ?क्यों उसने अपनी चाहत को मार दिया और समाज के दृष्टिकोण के आगे सर झुका दिया एक आदर्शवादी ,संस्कारी बेटी बनकर रह गयी वो .....जिंदगी भर के लिए सिसकियाँ और पछतावा चुन लिया था उसने ...कैसी विडंबना थी ये ....कैसी विडंबना ।