ऊंचा कौन
ऊंचा कौन
नई नई जवान हुई, आधुनिक और महंगे प्रसाधनों से सुसज्जित गगनचुंबी अट्टालिका ने अपने आस पास की छोटी छोटी सी इमारतों को देखा तो दंभ से भर गई और हिकारत भरी नज़र से देखकर कहने लगी, " तुम तो पैबंद की तरह हो, बेवजह उगने वाली खरपतवार की तरह , जो बहुत जल्द ही उखाड़ दी जायेंगी और तुम्हारी जगह मेरे जैसी हसीन और रूपवान अट्टालिकायें आयेंगी, तुम्हारा तो अस्तित्व ही मिट जायेगा |" छोटी इमारतों ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराहट के साथ खड़ी रही।
थोड़े दिन बाद दिवाली का त्यौहार आया, चारों तरफ चहल पहल, रंग रोगन, तरह तरह की रोशनी से हर ओर खिल रहा था। ऊँची अट्टालिका भी अपने आप को देखकर इतरा रही थी , आज उसका रूप देखते ही बनता था, अचानक उसको तरह तरह के पकवानों की खुशबू आई तो, अपनी अकड़ी हुई गर्दन को थोड़ा सा झुका कर नीचे देखा तो बस देखती ही रह गई, बड़े बूढ़े, नौजवान, बच्चे, औरतें सब रंग बिरंगे परिधानों में आपस में खुशियाँ बाँट रहे थे , छोटी इमारतों की आभा देखते ही बन रही थी, एक अलग ही महक महसूस कर रही थी ऊँची अट्टालिका। फिर अपने अंदर झाँका और अपनी महक सूँघने की कोशिश की तो उबकाई आ गई उसे, शराब की बदबू, जुए के दौर, पैसे के रिश्ते, बचपनविहीन बच्चे, उफ्फ ये भी कोई जि़दगी है। छोटी इमारतें आज उसे अपने आप से भी ऊँची दिख रही थी, उनकी सादगी में संपूर्णता थी।