Dev Kumar

Drama

5.0  

Dev Kumar

Drama

तेरा गुनहगार हूँ माँ

तेरा गुनहगार हूँ माँ

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देखना कहीं ये गुमशुम न रहे इसका ख्याल रखना इससे बाते करते रहना, मेरी माँ छोटे-छोटे बच्चों से कह रहीं थी और मैं उदासी की चादर ओढ़े बैठा-बैठा माँ की बातें सुन रहा था ! ऐसा नहीं था कि मैं मुस्कुराने की कोशिश नहीं करता था ! मैं जब भी मुस्कुराने की कोशिश करता मेरे इर्द-गिर्द घूमते गमों के साये मुझे घेर लेते और मुझसे कहते तेरी किस्मत में सिर्फ हमारा साथ है। ये होंठो की हंसी,ये मन की ख़ुशी तेरे नसीब में कहाँ। मैं अपने ही घर मैं एक अजनबी की तरह रहने था न किसी से बोलना न किसी से बात करना बस अपनी उदासी को ही अपना घर बना लिया था मैंने ! एक रात जब मैं पसीने से लतपत अँधेरे कमरे में पड़ा था ! तभी मेरे कानों में माँ कि आवाज़ पड़ी, जैसे तू रहता है उसे देख कर लगता है जैसे तेरे माँ-बाप मर गए हों ये क्या हाल बना रखा है अपना ! कमरे का पंखा चालू किया और अपने  आँचल  से मेरे माथे का पसीना पौछने लगी ! हाथों की थपकिया देकर मुझे सुलाने लगी. रात गहरा रही थी पर मेरी आँखों में नींद का एक कतरा तक नहीं था ! माँ मुझसे कुछ कह रही थी ! पर माँ की कही कोई भी बात मुझ तक पहुँच ही नहीं रही थी ! या फिर यूँ कहें कि मैं उनकी बातों को सुन ही नहीं रहा था। परेशान होकर मैंने सोने का बहाना किया। कुछ देर बाद माँ उठकर चली गयी। माँ के जाते ही मेरी आँखों से आंसू बहने लगे ! जिनके माँ-बाप मर जाते हैं वो रहते है ऐसे ! माँ की ये बात मेरे सीने में खंजर की  तरह उतरती जा रही थी। और अहसास दिला रही थी, कि इस भरी दुनिया में मुझे समझने वाला कोई नहीं। सिसकियाँ भरते-भरते अब मैं जो करने जा रहा था वो सहीं है या गलत मैं नहीं जान पाया. सही-गलत के इस दोहराये में महसूस हुआ कि मैं कितना कमजोर हूँ एक फैसला भी नहीं ले सका तभी तो मैं इतनी देर से अपनी कलाई पर चाकू रखे बैठा रहा पर उस चला न सका ! सही कहते हैं लोग, कि एक कमजोर और बेबस इंसान कुछ नहीं कर सकता सिवाय रोने के और मै भी रोने के अलावा कुछ न कर सका और पल-पल मरने वाली जिंदगी जीने लगा अपने परिवार के साथ -साथ अपनी माँ की उलझने बढ़ाने लगा। 

माँ की आँखों में जो बेटे के लिए फिक्र होती है। वो मैं तो क्या दुनिया का कोई भी बेटा नहीं जान सकता। माँ मुझसे दिन में हजार बार पूछती बेटा आखिर बात क्या है-बता तो सही, कुछ तो बोल। माँ मेरे सामने ऐसे गिड़गिड़ाती जैसे कोई भिखारी भीख के लिए गिड़गिड़ाता है। पर मैं अपनी माँ को सिवाय मायूसी के कुछ न दे सका। इसके बाद मैंने कई बार चाहा कि माँ को सब कुछ बता दूँ पर हिम्मत न कर सका और बताता तो क्या बताता, कि मेरा जो हाल है.वो उस लड़की की वजह से है जो तुम्हे बिलकुल भी पसंद नहीं। माँ तुमने ठीक कहा था वो मुझे धोखे के अलावा कुछ नहीं दे सकती। प्यार-मोहब्बत की बातें किताबों और कहानियों में अच्छी लगती हैं।असल में आज-कल प्यार है कहाँ। पर मैंने तुम्हारी एक न मानी, बस अपने दिल के हाथों मजबूर होकर मैं उसे चाहता रहा। मैं तो इतना पागल था।जब तुमने मुझे बताया कि वो किसी और के साथ घूम रही थी. तो मैंने तुम्हे तुरंत जवाब दिया था। घूमने में क्या है-वो प्यार तो मुझसे करती है। वो मुझे कभी धोखा नहीं देगी, उसने कहा था मुझसे। उस दिन मेरा ये भ्रम भी टूट गया. जब मैंने उसको बेवफा के रूप में देखा। और तो और वो उस व्यक्ति से बात कर रही थी. जिससे वो बेइन्तेहाँ नफरत करती थी। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी मेरी चाहत में कमी नहीं आयी। क्योंकि किसी भी इन्सान को कभी भी, कही भी किसी किसी से भी लगाव हो सकता है। चलो किसी से लगाव हो भी जाये तो क्या ये जरुरी कि जिसे हम प्यार करते हैं। उसे भूल जाये, उसके साथ धोखा करें ? अगर आप किसी की ओऱ खिचते जा रहे हो और आप पहले से ही किसी के रिलेशन में हों। तो अपने पार्टनर,अपने लाइफ पार्टनर से इस बात को शेयर करें। ऐसा करने से एक बंधन टूटने से बच सकता है। अगर आप इसआकर्षण  के दौरान अपने पार्टनर या अपने लाइफ पार्टनर को भूल जाते हैं। तो अलग बात है. वैसे ये मुमकिन नहीं कि जिसे हम प्यार करें, उसे यूँ ही भूल जाए.पर मेरा ये विश्वास भी टूट गया। उसने वो राह चुनी जिसपे मेरे लिए सिर्फ कांटे थे और वो किसी गैर की दुनिया में रमती चली गयी। मुझे तन्हाई और गम के अँधेरे में धकेल कर. और मैं उससे ये तक न पूछ सका कि मेरा कसूर क्या है ?

मैंने तो सिर्फ प्यार किया था। शायद यही मेरा कसूर था मेरा ! माँ मुझे वो दिन आज भी याद है. जब तुमने और पूरे परिवार ने कहा था कि मैं घर का सबसे समझदार लड़का हूँ। पर प्यार समझदारी से कहाँ होता हैं. लोगों का कहना है जब हम किसी को पसंद करते हैं, तो उसकी सारी बुराईयां भूल जाते हैं और किसीसे नफरत करते हैं. तो उसकी सारी अच्छाईयां भूल जाते हैं। पर मैं उससे कभी नफरत न कर सका. जबकि उसने तो बेवफाई की थी। उसकी बेवफाई का दर्द सीने में दवाये। बस मन ही मन घुटता रहा ? मुझे इस तरह गुमशुम देखकर परिवार के सभी लोग मुझे समझाने में लगे रहते। एक दिन मेरा छोटा भाई मेरे पास आया और कहने लगा-भैय्या आप ऐसे क्यों रहते हो ? मैंने न चाहते हुए भी उसे जवाब दिया-कुछ नहीं बचा जिंदगी में. सब बेकार है। न जाने क्या सोचकर वो मुझे ऐसी जगह ले गया। जहां चारों तरफ कटे हुए पेड़ नजर आ रहे थे। मुझे एक पेड़ के पास खड़ा किया और कहने लगा-देखिये इसे, मैंने गुस्से से जवाब दिया-क्या देखूं इसमें, कटा हुआ पेड़ है ? अच्छा तो ये क्या है। उसने उस पेड़ से निकलती नन्हीं-नन्हीं टहनियों को छूते हुए पूछा, और कहने लगा-देखिये इस पेड़ को जिसे लोगों ने काट दिया। फिर भी इसने हार नहीं मानी, आप तो एक इन्सान हो आप कैसे हार मान सकते हो। वक़्त कैसा भी हो उसका सामना करना चाहिए। सुःख-दुःख तो जिंदगी में आते-जाते हैं। अगर अभी दुःख है तो आगे सुःख भी आएगा। दुःख को कभी बुरा मत कहो, क्योंकि अगर दुःख न होता तो इन्सान सुःख की अहमीयत को भुला देता। इसीलिए भगवान ने सुःख-दुःख बनाए हैं।

मेरा भाई बिना रुके बोले ही जा रहा था। मैं उसके साथ होते हुए भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था।  भैय्या मैं ठीक कह रहा हूँ न-उसने पूछा। पर मैंने उसकी बातो का कोई जवाब नहीं दिया। या फिर कहे कि मैंने उसकी बाते सुनी ही नहीं। मैं तो उस सोच में डूबा था। जिसका कोई मायना नही,,,कोई कैसे प्यार में धोखा कर सकता है। या फिर जो उसने मुझसे किया वो प्यार ही नहीं। महज़ इस दुनिया का बनाया एक बनावटी रिश्ता था। ये दिल के रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं। जितनी जल्दी बनते हैं। उससे कई जल्दी टूट जाते हैं। हमें ये दिल वाले रिश्ते बनाने ही नहीं चाहिए। ये ढोंग है ? दिल का बनाया रिश्ता एक दिन टूट ही जाता है। भैय्या आप सुन रहे हो न, मैं क्या कह रहा हूँ। लग-भग मुझे झिंझोड़ते हुए बोला। सब दिखावा है, कुछ भी हक़ीक़त नहीं सब दिखावा है। मैंने गर्दन इधर-उधर करते हुए जवाब दिया। क्या दिखावा है, और किससे कह रहे हो आप-मेरे छोटे भाई ने आँखों में आँखे डालकर पूछा। मैं ख्यालो कि दुनिया से बाहर आया तो देखा मेरा भाई आँखों में हैरानी और चेहर पर खौफ लिए मेरी ओर देख रहा था। मैंने बड़ी शर्मिंदगी से उससे कहा-कुछ नहीं सब ठीक है। चल अब घर चलते हैं। बहुत देर हो गयी ? चलते हुए मैंने जब अपने भाई की तरफ देखा वो अब भी सहमा हुआ लग रहा था। हमेशा चतर-पतर करने वाला चुपचाप मेरे साथ चलता ही जा रहा था। और मैं उससे ये तक न पूछ सका कि क्या हुआ मुझसे डर क्यों रहा है। मेरा हाथ पकड़ कर चल इतना दूर-दूर क्यों चल रहा है। मैं उससे पूछता भी तो किस मुह से पूछता, सब कुछ मेरा ही तो किया कराया था। और ये सब सोचने-समझने में हम घर पहुंच गए। 

शाम के सात बज रहे थे। सूरज इस दुनिया से किनारा कर रहा था। अँधेरे की परछाइयाँ चारों ओर से घिरती आ रही थीं। आँखों के सामने धुंधलापन था। तभी मैंने देखा कल्पना तेज कदमों से चलते हुए मेरे पास आई और मुझसे लिपट गयी-कहने लगी तुम्हारे बिना नहीं जी सकती मैं ? उसके आंसुओं ने मेरे कंधे भिगो दिए थे। वो आँहें भर-भर के रो रही थी। मैंने उसके सर पे हाथ फेरते हुए कहा-रो क्यों रही हो मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ रहता हूँ। अच्छा तो ये बात है.......  

इस आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा तो मैंने देखा मेरी माँ मेरे सामने गुस्से से तिलमिला रही थी। ये वही है न, जो तुझे छोड़ कर चली गयी थी। और रो क्यों रहा है. आज फिर खुली आँखों से ख्वाब देख रहा है। तेरे पास कोई कल्पना-वल्पना नहीं है। तेरे सामने तेरी माँ खड़ी है। पहचानता है मुझे-तू कैसे पहचानेगा, तू यहाँ होकर भी यहाँ नहीं रहता, तू तो उसके पास रहता है। जिसको प्यार का मतलब भी बताना पड़ता है। सारे आंसू अभी बहा देगा तो मेरी मौत पर क्या बहाएगा। अभी मैं जिन्दा हूँ. मेरे मरने के बाद रो लेना, जितना चाहे उदास रह लेना। उस वक़्त तुझसे कोई नहीं पूछेगा कि तू रो क्यों रहा है, इतना उदास क्यों रहता है। तू सुन भी रहा है।  या फिर मैं यूँही बके जा रही हूँ। माँ मुझे झिंझोड़ते हुए बोली। मैंने अपना चेहरा हाथों से ढाँप लिया और जोर-जोर से रोने लगा अपना सर माँ के कदमो में झुकाते हुए कहा-माँ मुझे माफ़ करदे, मैं जानता हूँ. मैं माफ़ी के लायक नहीं, जो अपनी माँ का दिल दुखाता है। वो कभी खुश नहीं रह सकता, पर माँ ये भी तो सच है कि माँ अपनी औलाद की सारी गलतियाँ अपने आँचल में छुपा लेती है।


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