शुभम-प्रणय और फ्री मूवी टिकट्स

शुभम-प्रणय और फ्री मूवी टिकट्स

5 mins
582


दो दोस्त शुभम और प्रणय जौनपुर में पुलिस ट्रेनिंग पूरी करके मध्य प्रदेश के चिन्चोर जिले में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए थे।चिन्चोर इलाका बहुत शांत था और पुरे इलाके में घूमने लायक कोई जगह नहीं थी, तो वह दोनो हर सप्ताहांत कोई ना कोई मूवी देख कर समय काटा करते थे। एक दिन शुभम को एक पत्र मिला, उसमे दो मूवी टिकट्स थे - रानी टाकीज़ में, "जंगली बुक" मूवी के शनिवार को शाम छह बजे वाले शो के। फिर तो इस हफ्ते का प्लान पक्का हो गया। शनिवार को दोनों पहुच गए रानी टाकीज़, बहुत भीड़ थी - मूवी ३डी में थी दोनों ने चश्मे पहने और अपनी सीटों पर बैठ गए। लेकिन लोगों को आपस में बात करते उन्हें यह पता चला की लगभग सबको फ्री टिकट्स मिले हैं, बात कुछ अटपटी सी थी।

मूवी चालू हो गयी, ३डी में तो सारे द्रश्य जीवंत हो उठे थे, फिर इंटरवल हुआ, और वहा समोसे-कोल्ड्रिंक वाले आये, शुभम और प्रणय हमेशा खा-पीकर ही मूवी हॉल आते थे,फिर उन्होंने कुछ नहीं लिया और मूवी चालू हुई, पर अचानक ही उनके आगे वाली सीटो के सारे लोग खड़े हो गए और परदे पर एक राक्षस प्रकट हो गया - लम्बे बाल, विशाल शरीर, लाल आँखे , शुभम और प्रणय ने अपने ३डी चश्मे उतारे तो पाया की वह तो सच में था, कोई मूवी इफ़ेक्ट नहीं। अब दोनों ने चुपचाप सीटो के नीचे झुकने में ही अपनी भलाई समझी। फिर वह राक्षस बोला की अब तुम सब की आत्मा मेरी गुलाम है, और मेरी ताकत को और बढ़ा रही है ,वह अट्टहास लगाने लगा, इतना कहते ही गायब हो गया, अब सारे लोग हॉल से बाहर आने लगे, दोनों दोस्त भी भीड़ में शामिल हो गए, शुभम ने अपने आगे जा रही लड़की की पीठ पर हाथ रखा तो उसने पीछे मुड़कर भी नहींदेखा जैसे उसे कोई होश ही ना हो, सब लोगों के चेहरो पर एक उदासी छाई हुई थी।

अब अगले दिन उन दोनों ने ध्यान दिया तो पाया की चिन्चोर के अधिकतर लोगों के चेहरों पर वैसी ही उदासी है। दोनों इस समयस्या के बारे में बात कर रहे थे तभी लॉकअप में बंद दिवाकर ने कहा - " साहब वह राक्षस मेरी वजह से आजाद हुआ है !" - दिवाकर एक चोर था और हाल में ही एक सेठ के घर चोरी करते पकड़ा गया था। दिवाकर ने कहा - " मै पहले रानी टाकीज़ के प्रोजेक्शन रूम में काम करता था, वहा पर काम करने के समय मुझे एक किताब मिली उसमे जादू-टोने की रस्मो के बारे में लिखा हुआ था, मुझे एक बार मैनेजर ने कलेक्शन बॉक्स में से रूपए निकालते पकड़ लिया और सबके सामने बेइज्जत करके निकाल दिया, फिर मैंने अपना सामान लेते वक्त उस प्रोजेक्शन रूम को बदकिस्मती का श्राप दे दिया, मुझे लगा की थिएटर बंद हो जायेगा पर कुछ नहीं हुआ, पर आज आप लोगों की बाते सुनके लगा की हो ना हो यह उसी श्राप का असर है।"

यह सुनकर दोनों ने फैसला किया की वह चिन्चोर के लोगों को इस श्राप से बचायेंगे, अब वह दोनों चिन्चोर के पुराने काली मंदिर के बाबा से मिले और इस समस्या का हल पूछा,बाबा ने कहा -"ऐसे श्राप में किसी वास्तु में बुरी शक्तिओ को केन्द्रित किया जाता है उसी को नष्ट करकर तुम सब लोगों को बचा सकते हो वर्ना धीरे-धीरे सारे चिन्चोरवासी उस श्राप के चपेट में आ जायेगे",फिर उन दोनों ने निश्चय किया की रात बारह बजे वह दोनों उस शक्ति केन्द्र को तोड़कर इस श्राप से पीछा छुडायेंगे।

रात बारह बजे वह दोनों रानी टाकीज़ के बाहर थे, वह अमावस की रात थी घने अँधेरे में हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था, फिर भी अपने फर्ज की खातिर उन दोनों ने अंदर जाने का साहस किया,वह सीधे हांल पहुच गए, अभी वह निरिक्षण कर ही रहे थे की मूवी चालू हो गयी, वह फिर से उस शक्ति केंद्र को ढूढने लगे पर इस बार मूवी कुछ अलग थी "जंगली बुक" के सारे जानवर परदे से बाहर आ गए - पर उन्होंने तो ३डी चश्मे भी नहीं पहने थे ! वह सब बहुत खतरनाक लग रहे थे ,अब उनके और जानवरों के बीच की दूरी कम होती जा रही थी, तभी प्रणय ने चिल्लाकर कहा भाग- उसके इतना कहते ही शुभम को लगा की जैसे वह किसी नींद से जागा और तुरंत भाग लिया।

वह दोनों अब सीधे प्रोजेक्शन रूम की ओर जा रहे थे- वहा पहुचकर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर लिया-बाहर जानवरों की गुर्राने और दरवाज़े को नाखूनों से खरोचने की आवाज़ें आ रही थी - उन्हें लगा की अब तो उनका अंत निकट है- तभी उस राक्षस की आवाज सुनाई दी -अब तुम दोनों की मौत और फिर वही खुनी अट्टहास - प्रणय ने झल्लाके कहा "पर अब हम तुम्हे और लोगों को नुक्सान नहीं पहुचने देंगे, हम इस प्रोजेक्टर को ही नष्ट कर देंगे"। फिर प्रणय ने अपनी सर्विस रिवाल्वर की सारी गोलिया प्रोजेक्टर पर उतार दी - एक भयंकर आवाज हुई जैसे कही विस्फ़ोट हुआ हो फिर एकदम शांत।अब वह दोनों बाहर आ गए - किसी जानवर का कोई नाम ओ निशान नहीं था। अब दोनों चैन से पुलिस स्टेशन वापस आये -दिवाकर ने पूछा "साहब आपको वह किताब मिली ?" उन दोनों को वहा कोई किताब नहीं मिली थी, उन्हें लगा की बस यही इस श्राप का अंत है।

दो महीने बाद उन्हें उनके पुराने दोस्त इंस्पेक्टर शुशोभन का जौनपुर से फ़ोन आता है -" यारो किस्मत देखो मेरी - मुझे मूवी के फ्री टिकट्स मिले हैं !"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama