कवि हरि शंकर गोयल

Comedy Horror

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कवि हरि शंकर गोयल

Comedy Horror

शक्ति का स्रोत : स्त्री

शक्ति का स्रोत : स्त्री

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लॉकडाउन खुलने के बाद अब पार्क भी खुल गए हैं । तो आज पार्क में चले गए । वहां पर छमिया भाभी को देखकर दिल खुश हो गया । आज कितने दिनों बाद दर्शन हुए उनके ! आंखों को कितना आराम मिला , बता नहीं सकते हैं । पलकें झपकना तक भूल गईं । मुंह खुला का खुला रह गया । एक बार तो लगा कि कहीं दिल उछल कर बाहर ना आ गिरे । लेकिन दिल संभल गया और अंदर ही अंदर उछल कूद करने लगा । 

छमिया भाभी भी बड़ी प्रसन्न हुईं हमें देखकर । वैसे तो छमिया भाभी जब भी पार्क में आतीं हैं , पूरे मौहल्ले में पता नहीं कैसे ये संदेश चला जाता है कि वे पार्क में चहल कदमी कर रहीं हैं और सारे "रसिकलाल" अपने अपने घरों से निकल कर पार्क में आ जाते हैं टहलने । तो आज तो पूरी फौज खड़ी थी । आखिर कितने दिनों बाद आईं थीं भाभी वहां पर । सब लोग दर्शनों के अभिलाषी थे । हमारी बात कुछ अलग है छमिया भाभी हमें बहुत मानती हैं और हमारा पूरा मान सम्मान करतीं हैं इसलिए हम भी उनका पूरा ध्यान रखते हैं । 


रामा श्यामा करने के बाद हमारे मुंह से असल बात निकल ही गई "बहुत दिनों बाद दर्शन हुए हैं भाभीजी । ऐसा लग रहा है कि चांद और सूरज एक साथ निकल पड़े हों" 


"मैं कुछ समझीं नहीं भाईसाहब" ? 


"भाभीजी । सूरज तो वो देखो पूर्व दिशा में निकल रहा है । चांद साक्षात मेरे सामने खड़ा है । तो दोनों एक साथ निकले के नहीं" । 


अपनी तारीफ सुनकर भाभी गदगद हो गईं । कहने लगी "भाईसाहब , कोरोना के चलते सब अस्त व्यस्त हो गया है । लॉकडाउन में फ्री बैठे थे तो मैंने भी प्रतिलिपि पर लिखना शुरू कर दिया । तब से ही लिख रही हूं । आज का टॉपिक है "वो औरत" । समझ में नहीं आ रहा है कि इस पर क्या लिखूं" ? 


मैंने कहा " औरत तो बल , विद्या , बुद्धि की खान है । वह हम जैसे तुच्छ प्राणी से टिप्स क्यों मांग रही है ? यह बात कुछ हजम नहीं हुई" । 


"बात ऐसी है भाईसाहब कि आप एक साल से लिख रहे हैं और मैं इस खेल में नई खिलाड़ी हूं । फिर आपकी रचनाएं सबको बहुत पसंद आतीं हैं , विशेषकर औरतों को । तो आपसे बेहतर कौन टिप्स दे सकता है मुझे" । 


हमें आज महसूस हुआ कि हम भी कुछ कम नहीं हैं । वरना तो हम खुद को एक "तुच्छ प्राणी" ही समझ रहे थे । हम भी जोश में आ गए और कहने लगे 

"देखो भाभीजी , औरत तो सिर से लेकर पैरों तक शक्ति की खान है । मैं समझाता हूं आपको। ये आपकी काली काली जुल्फें हैं , इन्हीं से तो घटाएं छातीं हैं । अगर आप इनको लहराओ नहीं तो काली घटाएं कहां से आएंगी और पानी कैसे बरसेगा ? आपकी जुल्फों से जो पानी गिरता है वही तो रिमझिम फुहारों में तब्दील होता है और सावन का अहसास कराता है । आपकी ये जो तीखी तीखी भौंहें हैं ये किसी तीर कमान से कम थोड़ी हैं । जब भी आप इन्हें चलाती हैं , सैकड़ों तीर एक साथ चलते हैं और हमारे जैसे हजारों लोग एक मिनट में "टें" बोल जाते हैं । कितनी शक्ति है इनमें ? 


आपकी ये जो नीली नीली आंखें हैं , समंदर से भी अधिक गहरी हैं । सागर में जब पानी कम पड़ जाता है और जीव जंतु तड़प उठते हैं तब सागर आपके पास ही तो आता है शर्म से पानी पानी होकर । और फिर वह आपसे पानी मांगता है तब आप मेहरबानी करके जीव जंतुओं पर तरस खाकर दो बूंद उसकी झोली में डाल देती हो । उन दो बूंदों से ही सारे समंदर लबालब हो जाते हैं । 


तुम्हारी एक मुस्कान से सारे पेड़ पौधे हरे हो जाते हैं । सारे फूल खिलने लगते हैं । अगर तुम मुस्कुराना बंद कर दो तो इस धरती पर हमेशा पतझड़ का ही मौसम बना रहे । ये जो सुगन्ध फैली हुई है चारों तरफ ये आपके बदन से ही तो निकल रही है । क्या मनुष्य क्या जीव जंतु , सब इस सुगंध के नशे में मदहोश हैं । 


आपके चेहरे की चमक से ही तो चांद में चांदनी है । आपकी बिंदिया से सारे सितारे टिमटिमाते हैं । चांद सितारे आपके ताबेदार हैं । ये जो गालों में पिंपल हैं ये पर्वतों की हसीन घाटी हैं । अधर गुलाब और कमल के फूल हैं । गर्दन जैसे सुराही है । इन दोनों बांहों में सारा संसार समाया हुआ है । आपका उड़ता आंचल जैसे आसमान है । सारे जीव जंतुओं में आपके वात्सल्य से ही जान है । आपकी नाभि जैसे डल झील है । आपके पैर जैसे "गति" हैं । अगर आप चलना बंद कर दें तो सारा संसार एक जगह रुक जाये । आपके हाथ अन्न के भंडार हैं जिससे सब लोग भोजन पाकर पुष्ट होते हैं । आप तो शक्ति स्वरूपा , धन दौलत वैभव की जननी और विद्या का सागर हो । पूरी की पूरी शक्ति का स्रोत । और कुछ बताऊं या इतना काफी है"। 


"अरे अरे भाईसाहब, आपने तो इतना मसाला दे दिया है कि इससे तो मैं बहुत सारी रचनाएं बना सकती हूं " । 


"अभी तो शुरुआत है भाभीजी । आपकी शक्ति तो अंतहीन है । आपकी एक चाल पर ही सैकड़ों लोग कुर्बान हो जाते हैं । पलक उठाकर अगर देख लो तो नशे की अधिकता से ही लोग डूब डूब कर मर जाएं । अगर आपकी उंगली उठ जाए तो जमीं पर भूचाल आ जाए । और यदि तुम रूठ जाओ तो ऐसा लगता है कि जैसे मुकद्दर रूठ गया हो" । हम एक ही सांस में कह गये । 


छमिया भाभी ने हमारे चरण स्पर्श किए तो हम पीछे हट गए । "अरे भाभीजी , ये पाप क्यों चढ़ाती हैं हम पर ? हम तो आपके चरणों की धूलि के बराबर भी नहीं हैं । बस, आप तो रोज एक बार दर्शन दे दिया करो । आपके दर्शन करने मात्र से ही हमें गजब की एनर्जी मिल जाती है " । 


फिर छमिया भाभीजी को उनके पतिदेव "भुक्कड़ सिंह" जी ने बुलवा लिया । फिर हम क्या करते वहां पर , हम भी चल दिए । 



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