Pooja Joshi

Drama Romance

5.0  

Pooja Joshi

Drama Romance

प्यार की परिभाषा

प्यार की परिभाषा

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कौन कहता है कि प्यार नहीं होता, ऐसा प्यार जो दिल में बस जाएं और जुबां पर भी ना आए। ये भी प्यार है।

मैं प्यार को लेकर कुछ ज्यदा उत्साहित नहीं थी। ना ही मेरे लिए प्यार में पड़ना आसान था क्योंकि किसी के इशारों पर नाचने वाली गुड़िया नहीं बना चाह रही थी।

मैं हूँ इश्क़, जी हाँ यही नाम है मेरा, मेरे मम्मी पापा मेरा नाम इश्क़ ही रखा क्यों के लिए प्यार की कहानी सुनी पड़ेगी।

जी ये मेरी नहीं मेरे मम्मी पापा के प्यार की दास्तां है।

एक छोटे से गांव में रहने वाले थे मेरे मम्मी पापा।

ईशान नाम का लड़का और कविता नाम कि लड़की, दोनों हो भोले भाले थे। दोनों हो गांव के स्कूल में साथ में ही थे। उनका बचपन हमारे जैसा नहीं था। इंडोर गेम तो हमारे समय की परिभाषा है। तब तो शायद ही इंडोर गेमस हो।

गांव की ज़िन्दगी जितनी सरल है। उतनी ही जटिल भी। हम तो ऑनलाइन ऑडर्स पर जी रहे हैं।

पर वो समय ऐसा नहीं था। वो लोग आज भी ज़िन्दगी को जीने के लिए परिश्रम करते है। ज़िन्दगी आसान तो ना गांव में थी ना शहर में।

तो हम प्यार की कहानी पर आते हैं वैसे मेरे मम्मी पापा के नाम मेरा नाम समझ पाना मुश्किल नहीं।

दोनों बचपन कि अठखेलियों में साथ रहे। जवानी की चौखट पर भी एक साथ ही कदम लिए आगे बढ़े। उनका साथ आज 55 साल है। जो बचपन से अब तक दोनों एक-दूसरे के ढाल बने हुए हैं।

बचपन तो खेल कूद में ही बीत गया। जब जवानी का जोश आया तो वो बहुत सी मुसीबतों के साथ आया। मेरे पापा अपने कॉलेज की पढ़ाई लिए दिल्ली आ गए और कविता यानी मेरी मम्मी गांव के ही कॉलेज से अपनी पढ़ाई की।

मुसीबत का दौर था साहब अब ईशान को समझ आता कि वो अपना दिल दिल्ली में नहीं लगा पा रहा है। छोटे से गांव का लड़का इतने बड़े शहर में अकेला, ईशान के मम्मी-पापा (दादा-दादी) पढ़े लिखे नहीं थे तो ईशान कविता को चिठ्ठी लिखता। गांव में ऐसा नहीं कि ये तेरा घर ये मेरा घर वहाँ सब का सांझा है। धीरे-धीरे चिट्ठी का सिलसिला चलता रहा।

अब हमेशा दो चिट्ठी आती मम्मी-पापा के लिए और कविता के लिए, कविता की चिठ्ठी में वो अपने सारे दर्द लिखता और यहाँ से कविता उसको नए शहर में बसने की लिए उत्साहित करती।

ऐसे ही चलता रहा सफर तीन साल पूरे हुए।

ईशान को एक छोटी से नौकरी मिल गई। किसी फैक्ट्री में तो चिट्ठी का सिलसिला लव लेटर्स में बदल गया।

ईशान ने बार कविता को एक सूखा हुआ गुलाब भेजा। कविता में भी उसको वापस में एक पंख भेज दिया।

(ये दोनों मेरे मम्मी पापा की प्यार की पहली निशानी)

कविता ने चिठ्ठी में लिखा ये गुलाब तो मेरी बुक में था तुम्हारे पास कैसे।

जवाब आया मेरा मोर पंख तुम्हारे पास है वैसे, कविता ये पढ़ मन ही मन मुस्कुरा रही थी। की मा आवाज लगाई। अरे कविता जा चाची तेरी राह देख रही है। ईशान के खबर दे आ उनको। कविता वो ही मुस्कान लेकर चल दी।

पर उसे ये अहसास हुआ कि बार तो ईशान कुछ लिखा ही नहीं वो जाकर घर पर उसके हाल चाल बता कर आ गई। प्यार नशा ऐसा ही है जब होता है तो सब भूला देता है।

ईशान ने अपनी पहली कमाई मनी ऑर्डर भेजा। ३०० रुपए (जनाब यकीन मंयिए बहुत ज्यदा कीमती थे वो पैसे)

जिस पर ईशान कि माँ के पैर मानो आज जमीन पर नहीं थे। और पापा अपनी खुशी आँखों से आँसू की कुछ नमी ला कर महसूस कर रहे थे।

कविता चिट्ठी में चाची तो आज चहक रही है। चाचा कुछ नम आँखों से अपनी खुशी दिखा रहा है। चाची ने मुझे भी दस रुपए दिए है। तुम्हारी पहली कमाई के।

जवाब आया- दस रुपए ही मिले तुम्हें

(चिढ़ते हुए) तुम ना होती तो कविता कितना मुश्किल था ये सफर।

पता है तुम मेरी कल्पना से भी ज्यादा मेरे लिए सोच लेती हो।

ये शहर में नौकरी का सुझाव तुमने ही मुझे दिया।

तुम से मिलने का मन है। पर आ नहीं पाऊँगा। क्यों तुम ? बस चिठ्ठी की ये लाइन कविता को परेशान कर रही थी। गांव से बाहर भी नहीं गई। दिल्ली जैसे शहर में जाना तो सोचके भी परे है।

पर मन की छाया और भगवान की माया के तो कहने क्या।

बस अपने कॉलेज के एक नाटक को लेकर पहुँच ही गई कविता सपनों के शहर दिल्ली जहाँ आज कल उसका दिल भी अटका हुआ है।

फिर क्या था शाम इंतज़ार था, चार साल होने को है तुमसे मिले, दिल में अपने दोस्त को मिलने की भावना नहीं थी, ना ही उस साथी की जो क्लास में साथ था, ही उस साथ खेलने वाले लड़के की, आज मन में चाह थी अपने प्यार को देखने की उसको मिलने की।

मन में जो उधडे बुन चल रही थी, एक नया एहसास था। खुशी कम और चंचलता के भाव थे मन में। चिठ्ठी से बाहर निकाल अब शब्दों को सामने से बया करना होगा।

ऐसा नहीं कि सिर्फ कविता ही थी जो ये सोच रही थी। ईशान का भी वहीं हाल था। आज पहली बार कविता अपने सजने संवरने पर ध्यान लगा रही थी। आज पहली बार उसको वो चंदेरी का सूट जाने क्यों अपने ऊपर अच्छा नहीं लग रहा था। मोजरी उसको भा रही थी। बस ये सोच जा रही थी कि क्या में आज भी उसको झल्ली लगूंगी।

ईशान कॉलेज के बाहर इंतज़ार कर रहा है। सबसे नजरें बचा निकल पड़ी।

आज ईशान‌ बहुत पतला लग रहा है। जैसे मानो खाना नहीं मिल रहा। पर उससे मिलने की खुशी का ठिकाना मिले तो कुछ और शब्दों को जगह मिले।

अभी तक तो रूठना मानना सब चिट्ठी में चल रहा था। आज क्या बात करे समझ नहीं आ रहा है। गले लगने को बेताब है दिल पर क्या करे। सामने इतनी झिझक होगी किसने सोचा।

ईशान तो जैसे चुप्पी की साधना में बैठा था, जैसे वो ये लम्हे खत्म हो नहीं होने देना चाह रहा हो। फिर कुछ देर बाद सारे गांव हाल उसने मुझसे जान लिया। पर अब एक कसक सी होने लगी में गांव की कहानी सुनने या सुनने नहीं आयी यहाँ।

तुमसे मिलने आई हूँ। तुमसे बातें करने तुम्हें देखने पर कविता ने भी चुप रहना ठीक समझा।

बस कॉलेज के गेट पर पहुँच कर ईशान ने कुछ ऐसा कह दिया की कविता की दुनिया बदल गई।

आई लव यू

यही तो सुनने लिए में तड़प रही थी।

ईशान ने कान के पास आकर बोला : मत जाओ रुक जाओ

मानो कविता की दुनिया इन्हीं शब्दों में रुक गई।

विता ने अपने को संभालते हुए बोला कि घर आओ और ले जाओ।

अब ये सिलसिला शादी तक पहुँचा। ईशान और कविता की शादी हो गई, दोनों दिल्ली में अपने आशियाने को बाने ने में लग गए।

कविता ने भी नौकरी शुरू की। दोनों की एक नई दुनिया बस गई। अब नए घर और नई फैक्ट्री भी लग गई। और इश्क़ भी दुनिया में आ गई।

दोनों ही एक अपनी ज़िन्दगी में खुश थे। कविता एक एनजीओ के साथ जुड़ गई और समाज कल्याण में लग गई। सब के पास सब है, मेरे पास है उनकी चिट्ठी।

मैं हूँ उनका इश्क़।

वो चले गए और अपनी चिट्ठी का एक पिटारा मेरे लिए छोड़ गए। हाँ, मैं जीती हूँ, उन चिट्ठी में आज ५५ साल हो गए दोनों को साथ। जहाँ है वहाँ भी साथ है।

आज भी मैं और मेरे पति उनकी चिठ्ठी को वैसे ही पढ़ते हैं। मैं कविता बन जाती हूँ और वो ईशान।


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