नाजायज़ औलाद
नाजायज़ औलाद


साहिल ने आते ही बैग टेबल पर रखा और कुर्सी पर बैठकर अपलक छत को देखने लगा।‘क्या हुआ साहिल आज कोई नई बात हुई कालेज में ? बहुत परेशान लग रहे है’।
रूपपेट निशांन्त ने चौकने हुए कहा साहिल अब भी विचारमग्न छत पर निगाहें गढ़ाए हुए था,उसे सबकुछ घुमता हुआ मालूम होता था। निशान्त ने पानी की बटल टेबल पर रखकर उसे झकसोरा तो लम्बे सांस लेकर जुते निकालकर फिर बिस्तर पर जा लेट।
‘क्या हुआ भई तबीयत तो ठीक है? निशान्त ने उसके पास बैठते हुए पूछा। उसने एक नजर खिड़की की और डाली फिर दिवार से टिककर बैठ गया। ‘जाने क्यों वो मुझे जानी पहचानी सी लगती है मै रोज आते जाते उस तरफ से नजरे बचाने की कोशिश करता हूँ लेकिन कहकर साहिल ने आंखे मुंह ली। हंसते हुए निशान्त ने कहा ‘ओह! तो उसके लिए इतने परेशान हो तुम्हे एक वही जानी पहचानी क्यों‘ लगती है और भी लड़कियों तो है बस्ती में, और तुम हो ही इतने स्मार्ट लौंडे की
‘चुप रहों यार, तुम कहां, की बातें कहां ले आते हो'साहिले ने झुझलाकर कहा। बेवजह क्यों परेशान हो रहे हो साहिल,मैं कितनी बार तुमसे कह चुका हूँ उस घर की तरफ न देखा करो तुम्हारे कालेज की लड़किया तो तुम पर मरती होगी लेकिन तुम हो आज तक किसी की बात भी नहीं करते आखिर तुम्हे वेश्याओं के घर में ऐसा क्या दिखाई देता है। निशान्त ने साहिल को देखकर गम्भीरता से कहा। साहिल ने टेबल पर से पानी की बाटल उठाई और एक बार में गट गट कर बाटल खाली। निशान्त वो जो भी हो मुझे ऐसा लगता है मैं उससे परिचित हूँ उसे देखते ही मेरे सामने अतीत के सारें पृष्ठ एक एककर खुलने लगते है मुझे गाँव की सारी चीजें दिखाई देने लगती है कुछ भी हो उससे मेरा जरूर कोई गहरा संबंध है।
निशान्त कुछ देर बैग में किताबे जमाता रहा फिर साहिल की हथेली पर अपना हाथ रखते हुए कहा मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ, साहिल कम उमृ में पेरेन्टस को खोने के बाद तुम पर बहुत बड़ा मानसिक आधात लगा होगा लेकिन अब अतीत को भूल जाओं’
साहिल ने झट खिड़की बन्दकर दी फिर बिस्तर पर लेट गया उसकी आंखों से आसूं निकलने लगे। निशान्त ने कहा वह एक वैश्या है साहिल में औरते किसी की नहीं होती हो सकता वह जानबूझकर तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही हो मानाकी अतीत में तुमसे वह परिचित भी थी या तुम्हारी रिश्तेदार भी हो लेकिन अब वह तुम्हारे लिए कुछ नहीं है वह एक वैश्या है।
साहिल ने निशान्त के हाथ पर सर रखकर ‘उफ्फ कहा और बाथरूम में चला गया। दस वर्ष का था साहिल जब दंग में हुई हिंसा में उसका सारा गॉंव जल गया गॉंव के आधे से ज्यादा लोग जलकर मर गए मरने वालो में साहिल का पूरा परिवार था,घटना के वक्त वह अपने ननिहाल में था फिर वहीं उसके नाना नानीने उसकी शिक्षा पूरी कराई, सके स्कूल में उसकी दोस्ती निशान्त से हो गई थी अब दोनों शहर में किराए का रूम लेकर पढ़ाई कर रहे थे, निशान्त सेना भर्ती की तैयारी कर रहा था व साहिल इन्जिनियरिंग की,पिछले कुछ दिनों से बस्ती के एक घर में साहिल को एक लड़की दिखाई देती थी उम्र कुछ उसी के करीब,तेज नाक नक्श, चेहरे पर एक वेदना उस घर में वर्षो से वैश्यालय चल रहा था। शहर की सबसे सस्ती बस्ती होने के कारण सारा मजूदर वर्ग यहीं रहता था।
उस लड़की को साहिल कभी उस घर के आंगन में पौधों को पानी देते देखता कभी वह घर की सफाई करते दिखाई देती, यूं तो साहिल किसी लड़की की और नजरें उठाकर ने देखता था लेकिन उसमें कुछ अजीब सा आकर्षण था उसे देखते ही लगता था उसके भी तट कुछ खुन सा रहा है कुछ स्मृतियों के चित्र उसके मानसिक पटल पर अंकित हो जाते थे।
इस बारे बात करने के लिए उसके पास निशान्त के सिवा कोई दूसरा न था जिसने कई बार उसकी बात हंसी में टाल दी और वहां ध्यान न देने की हिदायते भी दीं।
शाम का समय था सूर्य क्षितिज के आंचल में हल्की सी वियनों की बौछारें करता हुआ समहित हो रहा है। पछियों के कलख के साथ खुले मैदान में बच्चों के स्वर सुनाई दे रहे थे। साहिल कालेज से लोटा और निशान्त के हाथोंसे पुस्तक छिन टेबल पर पटक दी और उसके कंधे पर सर रखकर अचेत सा बैठ गया।
निशान्त ने उसका बैग एक तरफ रखते हुए का ‘क्या हुआ ?आज फिर उस वैश्या में मन रमा रहां तुम समझते क्यों नहीं तुम्हारे आगे तुम्हारा करियर है क्यों अनावश्यक सोचते रहते हो ?
‘अनावश्यक नहीं में उसे जानता हूँ’ साहिल ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा निशान्त ने चौंककर पूछा क्या कह रहे हो। ‘हा वह मेरे गॉंव’ ‘लेकिन एस दंगे वे बाद तुम गॉंव गए ही नहीं थे’
‘मुझे अब कुछ याद आ रहा हे वह कहीं मेरे आसपास रहती थी वह मेरे बराबर थी हाँ मेरे साथ खेलती भी थी हम साथ खेत भी जाते थे’।
साहिल की आखें लाल हो रही थी उनमें आंसू निकल रहे थे। वह सुन्न हो गया था।
लेकिन तुम्हे कैसे पता ? ‘मुझे याद आ रहा हैं कुछ मैं जब भी उसे देखता हूँ वह दिनभर मेरी ऑंखो के सामने रहती है आज कालेज से मैं कुछ सोच रहा था कि मुझे याद आया।
‘उक्क यार ये कोई बात हुई ? तुम जाने किस कल्पना में खोए हो वो वैश्या तुम्हे कुछ नहीं दे सकती’
‘चुप रहो तुम वो जन्मजात वैश्या नहीं है वो नाजायज औलाद नहीं है किसी की साहिल की आवाज कुछ तेज हो गई थी। कुछ देर रूम में सन्ताटा पसर गया फिर निशान्त में धीरे से साहिल के कंधे पर हाथ रखा और लम्बी सांस खींचने हुए कहा ‘क्योंन उससे कुछ ले कई बार इस पशे में लड़कियां मजबूर होकर आती है वो फिर धोके से थकेल दी जाती है।
‘हम उससे मिल कैसे सकते है लेकिन’ कहते हुए साहिल निशान्त के समान्तर पलंग पर बैठ गया। दोनो कभी सर खुजलाते कभी जोर से देर हिलाते तो कभी बुड्डी पर हाथ फेरकर स्वयं ही स्वयं को ना में अन्तर देते। बहुत देर मन में तर्क विर्तक करनेके बाद साहिल से निशान्त ने कहा। ‘तुम बुरा न आनो तो एक आइडिया है !’ साहिल का आसुम गोरा चेहरा खिल उठा इंजिनीयरिंग के काले धब्बे चश्में के नीचे साफ देखे जा सकते थे कई दिनों बाद उसके चेहरे पर ऐसी चमक थी। कहो जल्दी कहो के स्वर में उसने मजूंरी दे दी।
अपने मोटे होठो पर अगुंलीयां फेरते हुए निशान्त ने धीरे से कहा’ तुम्हे कस्टमर बनकर जाना पड़े ‘व्हाट, व्हाट डू य मीन आ कन्ट टू बिकाय एन इंजिनीयरिंग नाट कस्टुमर।
‘सारी सारी माय ब्रो लेकिन आइडिया बुरा नहीं है यदि तुममें इतनी भावुकता और उत्सुकता है उसे जानने की तो।
‘तो ? तुम्हे मैं वासना का प्रेत ’ साहिल ने निशान्त को बीच में ही टोकते हुए कहा।
और कोंई आइडिया हो तो कहां वरना में खुद ही ’
खुद ही क्या ? रोज उसके दर्शन करके यहां घंटों सोचते रहोंगे ?
‘क्यों न आज रात चुपके से उस घर में जाया जाएं’
साहिल ने नजरे चुराते हुए कहा।
‘हैलो मिस्टर मैं कोई ऐसा गैरा नहीं हूँ मुझे भी आर्सी से भर्ती होना है सैनिक से पहले मेरे माथे पर चोर का ठप्पा लगवाने का सोचा है क्या ? कहकर निशान्त ने अपनी किताब निकाली और कुर्सी को खिड़की के पास खींचकर पढ़ने बैठ गया साहिल छोटे से रूम में टहलता रहा उसके इंजिनियर माग मे जब कोई विचार न अरया तो मन मानकर पढंने बेठ गया। दो सप्ताह इसी तरह बीत गए इस बीच निशान्त ने सेना भर्ती परीक्षा पास कर ली और उसकी ट्रेनिग का लेटर आ गया। साहिल ने अपने एकमात्र जिगरी दोस्त को नम ऑंखो से विदा किया निशान्त के जाते वक्त उसे हुआ जैसे उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उससे विलग हुआ वे मित्रकम भाई अधिक थे।
पहले निशान्त की बातें सुनकर साहिल का जी बहुल जाता था वह कुछ उम्मीद में पढ़ने बेठ जाया करता था लेकिन निशान्त के जाते ही वह बीयार सा उसकी ऑंखो के सामने वेश्या लड़की का चेहरा घुमता रहता रह रहकर उसे उसे अपने गॉंव के माता पिता की बचपन के मित्रों की याद आती एक रात जब उसे नींद न आयी तो किताबें खोलकर बैठ रहा किन्तु उनमें भी मन न लगा, उसके जहन में एक आवाज बार-बार उठ रही थी मानो उसे पुकार रही हो उसके हिम्मत करके द्वारा बाहर से बन्द किया और वैश्यालय की और चल पड़ा। शत अधिकन हुई थी लेकिन चहल पहल कम थी आकास पूर्णत: कालेधन से ठक चुका था। एक भी तारा जनर न आता था वह घर दुल्हन की तरह सजा था। शहर कई रईसों की बड़ी-बड़ी गाडि़यॉं खड़ी थी भीतर से कहीं हंसने खिलखिलाने के स्वर आने तो कही से दया और चीख के भीतर कदम रखने से पूर्व उसका एक – एक कदम मान भर का हुआ जाता था भीतर जातेही कोई अधेड़ औरत उसे इशारें करती तो कोई कजरे के कुल तोड़कर उस पर फेकती उसका कलेजा कटा जाता था लेकिन वह विवंश या उस लड़की को जाने बगैर उसका क्षण – क्षण जीवा मुश्किल हो रहा था उसेन सहमी सी आवाज में एक औरत से पूछा जो लड़की रोज बाहर पौधों को पानी देती है वह है क्या? ‘कितनेलाया है’? उस औरत ने जैब की तरफ देखकर कहां
साहिल ने जो रूपए किताबें खरीदने के लिए जमाकर रखे थे उस औरत के हूवाले कर दिए और उसके इशारे के अनुरूप एक कोठरी में जा पहुँचा।
वहां केवल एक बल्ब जल रहा था कम रौशनी का साफ सुथरी कोठरी में एक कोने में विसवाज पर सर टिकाकर वह लड़की बैठी थी अपने दोनों घुटने उसने हथेलियों में कस लिए थे किसी के आने की आहट मात्र से उसके मुख से कराह निकल पड़ी। साहिल को थोड़ी सी रोशनी में चमकता एक करूणाह मुख दिखाई दिया जिस पर आसूंओं से रेखाए बनी हुई थी। पर जोरी के आभुषणों से लदी कोमल देह देखकर साहिल को दिल कुट पड़ा उसने चश्मा निकालकर जेब में रख लिया और मटमैली दिवार से सर टिका दिया कुछ देर सिसकिया भरने के बाद वह लड़कि उठी और कोठरी का दरवाजा भीतर से बन्द करके मखमली रोज पर लेट कर रोने लगी। पतली शुष्क देह से वेदना झलक रही थी। कम उमृ में देह को परिपक्व करने के प्रयासों में उसकी फूल सी देह कुचल गई थी। उसने रोते हुए अपनी आंगिया खोल कर एक कोने मे पटक दी। उसको इस किया से आहत साहिल ने आंखे पोंछी और गोटेदार अंगियां को बिना उसकी और देखे उसकी तरफ फेंककर वरूण स्वयं में कहा ‘मैं कोई जानवर नहीं हूँ तुम नार्मल बैठ जाओ मैं तुम्हे कुछ न करूगां’ वह लड़की अब भी तकिए से मुंह छिपाए पलंग पर पड़ी रही साहिल ने कुछ क्षण बाद फिर कहा।
‘तुम कपड़े पहनकर बैठ क्यों नही जाती मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं करूगा मैं तुम्हारी उमृ का हूँ मैं वि़द्यार्थी हूँ मैं तुमसे कुछ जानने आया हूँ देखो तुम डरो मत अपने कपड़े पहन लो अबकी रोने हुए उस लड़की ने अपनी अंगिया पहन ली और दिवार से पीठ टिकाकर बैठ गई उसने अपना सर दोनों घुटनों के बीच डाल लिया।
बल्ब लुपझुप हो रहा था, उस लड़की को कुछ साक दिखाई न दिया या उसने कुछ देखना ही न चाहा वह बस एक करूण दयामय आवाज सुन रही थी।
साहिल ने उसकी तरफ देखकर कहा तुम्हारी इजाजत हो तो मैं कुछ पुछ सकता हूँ तुमसे ?
वह लड़की कुछ न बोली बस अपने घुटनों में सर डालकर बैठी रही। उसे मौन देख साहिल ने खड़े खड़े ही कहा
‘क्या तुम मुझे जानती हो ? देखों मैं तुमसे कुछ पुछने आया या शायद मैंने तुम्हे कहीं देखा था, तुम्हारा गॉंव।
जैसे उसके दिल पर गहरा आघात लगा हो वह हिचकियॉं देकर रोने लगी।
‘देखो तुम रोती क्यों हो? क्या तुम अपने गांव का नाम बता सकती हो मुझे देखो लो सही क्या तुम पहचान पा रही हो’ उस लड़की ने कनखियों से साहिल को देखा फिर विसवाज में मुंह छिपा लिया।
‘मैं इसलिए आया हूँ की मैं जान सकूं तुम यहां कैसे आई? तुम्हारा गांव ’
‘मुझे नहीं पता’
एक वेदना मयी स्वर साहिल को सुनाई पता उसने यह आवाज पहले कहीं सुनी है हां आज से बारह वर्ष पहले अपने गांव में ऐसी ही आवाज ?
‘तुम्हारा नाम ?’
‘सुनिधि’
‘सुनिधि, सुनिधि, आह ! सुररो मंगेरा काका की सुररो’
सुनिधि साहिल के बचपन की मित्र थी जिसे वह सुररो कहता था उससे ही तो आशाई की थी उसकी मां ने साहिल की।
सुररो सुनते ही वह लड़की उठ खड़ी हुई वह कई देर तक साहिल को अपलक देखती रही साहिल मैं साहिल जिट्टू तुम तुम वह लड़की दिल सुनते ही साहिल से चिपटकर रोने लगी साहिल ने उसे देह पारा से बांध लिया वह थी बहुत देर रोता रहा उसके कजरे की महक में उसे एक अजीब सा परिवर्तन अर्थासन हुआ वह हसंती खिलखिलाती सूरखो वैश्या उसे लगा जैसे उसके कान पर्दे कट जाएगे निशान्त जैसे उसके कानों में वैश्या वैश्या चिल्ला रहा हो।
‘तुम कैसे तुम’ साहिल का कंरू अवरूद्ध हो चुका था।
सुनिधिने उससे खुद को विलगकर कहा
‘तुम चले जाओं साहिल तुम यहाँ मैं वैश्या हूँ मैं तुम्हारे लिए नहीं तुम चले जाओं’
साहिल दिवार के सहारे टिककर उसकी शिथिल देह देखना रहा फिर यनायक कोने में जाकर बैठ गया।
‘तुम सुररो मैं जानता था तुम मेरी चिर परिचिता हो मैें सही था सुररो निशान्त् वह तो झुक कहता था तुम वैश्या नहीं मेरी सुररो हो ?
वह मन ही मन बड़बड़ाता रहा।
‘सुररोतो मर गई है गांव मे नलकर मैं तो एक वैश्या हूँ सिर्फ वैश्या कहकर उसने अपना सर दिवार से टिका दिया।
‘मेरे लिए तो तुम मेरी सूररो हो अब भी तुम मुझसे ब्याही गई थी न सुररो क्या तुम्हे।
‘कौन सुरसो मैं वैश्या हूँ वैश्या उठो चले जाओं यहा से तुम्हे वैश्या के दामन में नहीं देख सकती मैं’
वह जोर से चिल्लायी और कांच के झिलमिलाते वल्ब् को हाथ से फोड़ दिया उसके हाथसे रक्त प्रवाहित होने लगा, साहिल ने खुन व हथेली रखकर कहा।
‘तुम वैश्या नहीं हो तुम्हारीपरिस्थितियों ने तुम्हे ये सब करने को विवश न कर दिया है सुररो आखिर तुम्हे यहां कौन लाया’
कमरे में अंधेरा पसर गया साहिल ने उसकी बाहं पर खुन प्रवाहित होते स्थान को हथेली से बांध रखा था फिर परदा टटोलकर उसे दांतो से काड़कर उसकी हथेली व बाधे दिया। और जाकर पलंग पर बैठ गया सुनिधि अब भी वहीं खड़ी थी सूर्निवत।
‘मैं नहीं जानती मुझे यहां कौन लाया बस ये जानती हूँ किस लिए लायाउस रात के बाद मैं ने खुद को यहीं पाया हर रोज इसी कैद में’
‘तुम मेरे साथ चलो सुररो मेरा यहां किराएका कमरा है, मेरा तुम्हारे सिंवा कोई नहीं है अब’
‘मैं तुम्हारी कुछ नहीं हूँ कह दिया मैं बस वैश्या हूँ तुम अपनी जिन्दगी किसी बेहतर जगह गुजारो साहिल, मुझमें अब कुछ नहीं रह गया है?
‘ऐसा मत कहो सुररो तुम तब भी वही थी अब भी वही हो सुररो देह से मेरा स्वार्ल नहीं है सुररो मैं तुम्हें यहां ते ले जाना चाहता हूँ’
साहिल ने सुधकते हुए कहा।
‘ये उम्मीद छोड़ दो इन लोगों ने दस साल तक मुझे पाला पोंसा ये यूँ ही नहीं मुझे जाने देगे अब यही मेरे सब कुछ है तुम अपना जीवन जियों मुझे अपना जीवन जिने दो’
साहिल रूम पर लौट आया वह कई दिनों तक कालेज नहीं गया बिस्तर पर पड़े सिसकियां भरता रहा उसे ज्ञात था जब तक उन लोगों को वह सुररों की कीमत न दे देगा वे उसे आाजाद न करेगे और सुररों वह तो वहां से न आने की जिंद पर अड़ीहै उसने ननिहाल में अपने नाम पर एकमात्र घर बेचने का निर्णय लिया जिसके किराए से उसकी फीस व रूम का खर्चा निकलता था। इंजिनियरिंग के दूसरे वर्ष का परिणाम भी इसी बीच आ चुका था वह पढ़नेमें बहुत कुशाग्र बुद्धि था उसका नाम पेरित बिस्ट में था लेकिन समेंट के लिए अभी दो साल और इन्तजार करना था। रह रहकर उसकेमन में केवल सुररो ही ख्याल आता था जब बचुपनमें उसका उससे अपनी हैं और उसके होते हुए वह इतना दर्द झेले? साहिल ने ननिहाल वाला घर बेच दिया और कालेजा भी छोड़ दी रूपए लेकर वापस वैश्यालय की और चला उसके कदमों मे यनामक आवेग उमड़ आया था उसके दिल में करूणां लहरे उठने लगी पहले तो उसके प्रस्तावपर वैश्वायों ने ना नुकुंर की लेकिन फिर उसकी जिद व सुररो की जिन्दगी का कुछ भान हुआ तो उन्होने रूपए लेकर सुररो को स्वतंत्र कर दिया। बड़े हठ के बाद सुररों साहिल के साथ उसके किराए के घर में आई। साहिल उससे लिपटकर बेइन्तहा रोया लेकिन सुररो आज बहुत खामोश थी। वह घर के एक कोने में जा बैठी और साहिल से कहने लगी।
‘तुमने बड़ी गलती कर दी साहिल क्यों अपनी जिन्दगी दांव पर लगा दी’
‘मेरी जिन्दगी अब तुम ही हो सुररो मैं नौकरी करूगां हम अपना घर बसाएगे तुम चिंतामत करों अब हो न मेरे साथ मुझे कहीं भी काम मिल जाएगा’
‘तुम्हारी उमृ है ही कितनी साहिल तुम ये बौझ कैसे सम्हाल वाओ
‘और तुम्हारी उमृ क्या है भला ? अपनी जिन्दगी के लिए क्या तुम्हे नंरक में पड़े रहने देता और तुम तो मेरे लिए आज फिर उसी शिरिष के फुल की तरह हो जिसकी खुबसुरती तले हमने बचपन बिताया आधा अधुरा ही सही, एक फुल का बोझ’
‘मेरा बोझ सह लोगे साहिल लेकिन मेरे पेट मे वल रही औलाद का इसे नाजायम औलाद कहोगे तुम ही’ कहते हुए सुररो की आंखे डबडबा आयी साहिल सब कह रह गया उसके सर पर ैसे किसी ने घन से आद्यात कर दिया हो सारा घर उसे घुमता हुआ मालूम हुआ। ‘नाजावयज औलाद? यह क्या होती है ?’
‘ जो किसी एक की न हो बलुकं है ये माचे का’ सुररो की आवाज में पीड़ा थी।
साहिल आगे बड़ा और सुररो को सीने से लगाकर कहने लगा।
‘तुम चिंता क्यों करती हो मैं हूँ ना कौन इसे नाजायज कहता है मेरे होते हुए’
सुर्रो दिल खोलकर रोई,उसके करूण कृन्दन में वेदना भी थी और प्राप्ति का सुख भी। वह तो अभी बीस बरस की बालिका थी उसे क्या पता था। मातृत्व क्या होता है उसने तो वैश्यालय की संगिनियों से जो कुछ सुना था वह कह रही थी और साहिल वो तो अभी कालेज स्टूडेंट था, कम्प्यूटर साइंस के असाइनमेंट की तरह उसने इस बच्चे को भी समझा ,क्या भार इसका ? दो माह तक साहिल नौकरी तलाशता रहा लेकिन कहीं ठिकाना न लगा एक कमरे में सुररो और वह बमुश्किल गुजर बसर कर रहे ले कई रात वे भूखे सोए। सुररो को सोने के लिए चारपाई थी, वह स्वयं नीचे जमीन पर ही सोता था।एक शाम जब नौकरी की तलाश से घर लौटा तो देखा सुर्रो जमीन पर तड़प रही है, लोगों की मदद से जैसे तैसे उसे अस्पताल लेकर आया। सारी रात सुर्रो दर्द से कराहती रही,बीस वर्ष की कच्ची उम्र में उसे अथाह वेदना से गुजरना पड़ रहा था’ सुबह के पांच बजे थे,हल्का सा उजाला फैल चुका था। सुर्रो ने पुत्र को जन्म दिया लेकिन नियति संतान के जन्म के साथ ही सुर्रो ने दम तोड़ दिया। साहिल आस्पताल के लकड़ी कि बेंच पर सोया था प्रभात की हल्की किरणें जब चेहरे पर पड़ी तो हड़बड़ा कर उठा और प्रसुति वार्ड की तरफ दौड़ा।
मिसेज सुनिधि का केस पिछे से नर्स ने आवाज लगाई।
‘हां हा जी मैं ही हूँ कहिए’
‘आप जरा कैबिन में आइए’ कहकर नसे चली गई।कैबिन में जाकर नर्स ने धीमी आवाज मे कहा: 'सुबह पांच बजे मिसेज सुनिधि ने एक संतान को जन्म दिया है लड़का स्वस्थ है’।
‘ थैंक्स , आई एम वेरी हैप्पी’ साहिल ने उल्लास में नर्स को बात पूरी न करने दी‘लेकिन हम उन्हे बचा नही पाए, मिसेज सुनिधि का शरीर बहुत कमजोर था’
और साहिल कई देर कैबिन की बेंच पर सर ठोककर रोता रहा उसके सर से खुन बहने लगा।
किसी ने उसे सम्हालने का साहस न किया वह कुछ देर रोना था फिर अचेत हो जाता।नर्सने कपड़े में लिपटी संतान बिलखते हुए साहिल को देते हुए कहा 'अब इसके जो कुछ है आय है यह सरकारी अस्पताल है हम ज्यादा देर तक बच्चे की देखभाल नहीं कर पाएगे।बच्चा स्वस्थ है,आप उनके पोस्ट मार्टम के बाद उनकी लाश ले जा सकते है'।साहिल ने रोते हुए बच्चे को गोद में लिया और आस्पताल की सिढि़यों से नीचे उतरने लगा उसके कानों में सुररो की वही आवाज दौड़ रही थी नाजायज औलाद बच्चे नवजात का वजन जाने क्यूं उसे बहुत भारी लग रहा था जैसे किसी ने उसके सर पर पहाड़ रख दिया हो उसे एक भारीवन के साथ नाजायज औलाद’ की ध्वनि चारों और से आती हुई प्रतीत होती लाश शव वाहिनि में रख दी गई थी साहिल से ड्राईवर ने पूछा आपका घर कहा है ? साहिल फिर दहाड़ मारकर जोर जोर से रोने लगा।