Vivek Pratap Singh

Abstract Children Stories Drama

3.9  

Vivek Pratap Singh

Abstract Children Stories Drama

मई का महीना

मई का महीना

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मई का महीना आ गया, पर घर में ना वो हलचल है, ना नये कोर्स लेने के बाद उन पर कवर चढ़ाने की खुशी ना गर्मियों की छुट्टियों के अनाउंसमेंट का इंतज़ार,।

आज फिर से कई सालों बाद संगम एक्सप्रेस में इलाहाबाद से बुलंदशहर का टिकट भी चेक किया, सीट उपलब्ध भी हैं सब अच्छा है पर मई के महीने की वो ख़ुशी ग़ायब है ।

ट्रेन में खिड़की की सीट कैसे बहन से झपटनी है और नागराज ध्रुव की कौन सी कॉमिक्स निबटानी है वो उत्साह भी ग़ायब है ।

मैं अब ३२ साल का हो चुका हूँ , पापा की छुट्टी सैंक्शन होगी कि नहीं वो टेंशन भी नहीं है, हाँ अब जब बाजार जाता हूं तो आते जाते जामुन दिख जा रही हैं, पर मुझे याद है ये तो बेमौसम वाली हैं असली वाली तो गांव जा के ही मिलेंगी, आमों के रंग भी पहचान पा रहा हूँ की ये डाल के पके नहीं हैं

सब याद आ रहा है, आज अंग्रेजी के शब्द Nostalgia का शाब्दिक अर्थ पता चला ।

आकाश शिवम् अली हेमंत भी शायद यही सोच रहे होंगे।

केंद्रीय विद्यालय का वो आखिरी दिन और हम सब के चेहरे पे वो ख़ुशी की कोई नानी के यहाँ कोई बुआ के यहाँ तो कोई दादी के यहाँ जाने वाले थे ।

इन्हीं यादों के सफ़र के बीच में हाल ही में गांव घूम के आया सोचा कि यहां तो कुछ पुराना जैसा होगा, पर बच्चे ना हमारी तरह २ बजे की घाम में खेलते दिखे ना खेत इतने साफ दिखे की जिन पर भूरा चाचा से बोलकर ट्रेक्टर चलवा के पिच बनवायी जा सके । बच्चों से बात करने पर रील्स पे कोंसा ट्रेंड चल रहा है ये ज़रूर पता चल गया ।।

फिर सब छोड़ के मैंने पापा का पुराना फ़ौजी काला बक्सा ही खोल लिया , और मम्मी का पुराना VIP सूटकेस जिसपे वो अंग्रेजी के अल्फाबेट वाले स्टीकर से अपना नाम लिख दिया था और बड़े शान से बताया था मामा को की सूटकेस मेरा है और मैं भी अब बड़ा हो गया हूँ ।।


मेरे सभी ९० के दशक में जन्मे साथियों को और उनकी यादों को समर्पित मेरी कविता मई का महीना.


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